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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मालवेके परमार - होती है । क्योंकि फूलका पुत्र लाखा, सिद्धराजके पूर्वज राजाका समकालीन था । मूलराजने ग्रहरिपु पर जो चढ़ाई की थी उसमें ग्रहरिपुकी सहायताके लिए लाखा आया था और मूलराजके द्वारा वह मारा गया था। यदि सिद्धराजके समय कच्छका राजा लाखा हो तो वह जाम जाडाका पुत्र ( लाखा जाडाणी ) होना चाहिए था। इसी तरह सिद्धराजकी १८ वर्षतक सेवा करके जगदेवके लौटने तक उदयादित्यका जीवित रहना भी कल्पित ही जान पड़ता है । क्योंकि वि० सं० ११५०, पौष कृष्ण ३ (गुजराती अमान्त मास )को,. सिद्धराज गद्दीपर बैठा । इसके बाद १८ वर्षतक जगदेव उसकी सेवामें रहा । इस हिसाबसे उसके धारा लौटनेका समय वि० सं० ११६८ के बाद आता है । परन्तु इसके पूर्व ही उदयादित्य मर चुका था। इसका प्रमाण उसके उत्तराधिकारी लक्ष्मीदेवके छोटे भाई और उत्तराधिकारी नरवाके सं० ११६१ के शिलालेखसे मिलता है । उक्त संवत्में वही मालवेका राजा था। प्रबन्ध-चिन्तामणिमें उसका वृत्तान्त इस तरह लिखा है:-"जगदेव नामक क्षत्रिय सिद्धराज जयसिंहकी सभामें था । वह दानी, उदार और वीर था । जयसिंह उसका बहुत सत्कार करता था । कुन्तलदेशके राजा परमर्दीने उसके गुणोंकी प्रशंसा सुन कर उसे अपने पास बुलवाया । जिस समय द्वारपालने जगदेवके पहुँचनेकी खबर राजाको दी, उस समय उसके दरबारमें एक वेश्या पुष्प-चलन नामका एक प्रकारका वस्त्र पहने नग्न नाच रही थी। वह जगदेवका आना सुनते ही कपड़े पहन कर बैठ गई । जगदेवके वहाँ पहुँचने पर राजाने उसका बहुत सम्मान किया और एक लाख रुपयेकी कीमतके दो वस्त्र उसे भेंट दिये। इसके बाद राजाने उस वेश्याको नाचनेकी आज्ञा दी । वेश्याने निवेदन किया कि जगदेव, जो कि जगत्में एकही पुरुष गिना जाता है, इस जगह उपस्थित For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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