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भारतके प्राचीन राजवंश
किया है । नलोदय नामक ग्रन्थ उसीका बनाया हुआ बताया जाता है। उसकी कवितामें श्लेष बहुत है । कई विद्वान् चम्पू रामायणको भी इसी कालिदासकी बनाई बताते हैं । उनका कहना है कि कालिदासने उसमें भोजका नाम उसकी गुणग्राहकताके कारण रख दिया है। __ सूक्तिमुक्तावली और हारावलीमें राजशेखरका बनाया हुआ एक श्लोक है । उसमें कालिदास नामके तीन कवियोंका वर्णन है । वह श्लोक यह है:
एकोऽपि ज्ञायते हन्त कालिदासो न केनचित् ।
शृङ्गारे ललितोद्गारे कालिदासत्रयं किमु ॥ नवसाहसाङ्कचरितकी एक पुस्तकमें उसका कर्ता पद्मगुप्त भी कालिदासके नामसे लिखा गया है । उसका वर्णन हम पहले कर चुके हैं ।
आनन्दपुर (गुजरात) के रहनेवाले वज्रटके पुत्र ऊवटने भोजके समयमें उज्जेनमें वाजसनेय-संहिता ( यजुर्वेद ) पर भाष्य लिखा था;
और प्रसिद्ध ज्योतिषी भास्कराचार्यके पूर्वज भास्कर भट्टको भोजने विद्यापतिकी उपाधि दी थी।
भोजके समयमें विद्याका बड़ा प्रचार था। उसने विद्यावृद्धिके लिए धारा-नगरीमें भोजशाला नामक एक संस्कृत-पाठशालाकी स्थापना की थी। उस पाठशालामें भोज, उदयादित्य, नरवर्मा और अर्जुनवर्मा आदिके समयमें भर्तृहरिकी कारिका, इतिहास, नाटक आदि अनेक ग्रन्थ श्याम पत्थरकी बड़ी बड़ी शिलाओं पर खुदवा कर रक्खे गये थे । उन पर अन्दाजन ४००० श्लोकोंका खुदा रहना अनुमान किया जाता है। खेदका विषय है कि धारा पर मुसलमानोंका दखल हो जानेके बाद उन्होंने उस पाठशालाको गिरा कर वहीं पर मसजिद बनवा दी । वह मौलाना कमालुद्दीनकी कबरके पास होनेसे कमाल मौलाकी मसजिदके नामसे प्रसिद्ध है । उसकी शिलाओंके अक्षरोंको टाँकियोंसे तोड़ कर
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