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मालवेके परमार ।
डूबकुण्ड नामक स्थानके कच्छपघाटवंशसम्बन्धी एक लेख में लिखा है कि भोजके सामने सभामें शान्तिसेन नामक जैनने सैकड़ों विद्वानोंको हराया था। क्योंकि उन्होंने उसके पहले अम्बरसेन आदि जैनोंका सामना किया था । इन बातों से स्पष्ट प्रतीत होता है कि भोज सभी धर्मो के विद्वानोंका सम्मान करता था ।
धाराके अबदुल्लाशाह चङ्गालकी कब्रके ८५९ हिजरी (१४५६ ई०) के लेखमें लिखा है कि भोज मुसलमान होगया था और उसने अपना नाम अबदुल्ला रक्खा था । परन्तु यह असम्भवसा प्रतीत होता है । ऐसा विद्वान्, धार्मिक और प्रतापी राजा मुसलमान नहीं हो सकता । उस समय मुसलमानों का आधिपत्य केवल उत्तरी हिन्दुस्थान में था । मध्यभारतमें उनका दौरदौरा न था । फिर भोज कैसे मुसलमान हो सकता था ? गुलदस्ते अब नामक उर्दूकी एक छोटीसी पुस्तकमें लिखा है कि अबदुल्लाशाह फकीरकी करामातोंको देख कर भोजने मुसलमानी धर्म ग्रहण कर लिया था । पर यह केवल मुल्लाओंकी कपोलकल्पना है । क्योंकि इस विषयका कोई प्रमाण फारसी तवारीखों में नहीं मिलता ।
भोज विद्वानोंमें कविराजके नामसे प्रसिद्ध था । उसकी लिखी हुई सिन्न भिन्न विषयोंपर अनेक पुस्तकें बताई जाती हैं । परन्तु उनमें से कौन कौनसी वास्तवमें भोजकी बनाई हुई हैं, इसका पता लगाना कठिन है । भोजके नामसे प्रसिद्ध पुस्तकोंकी सूची नीचे दी जाती है:ज्योतिष | राजमृगाङ्क, राजमार्तण्ड, विद्वज्जनवल्लभ, प्रश्नज्ञान और आदित्यप्रतापसिद्धान्त ।
अलङ्कार | सरस्वतीकण्ठाभरण ।
योगशास्त्र । राजमार्तण्ड ( पतञ्जलि योगसूत्रकी टीका ) । धर्मशास्त्र । पूर्तमार्तण्ड, दण्डनीति, व्यवहारसमुच्चय और चारुचर्या । शिल्प | समराङ्गणसूत्रधार ।
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