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मालवेके परमार।
गुफा द्वारा एक महलमें पहुँचना और पिंजरेमें लटकते हुए तोते द्वारा रूपवती स्त्रीके वेशमें नर्मदाको पहचान कर उससे मिलना वर्णित है।
नवे सर्गमें-राजाने नर्मदासे यह सुना कि रत्नावती नगरी यहाँसे १०० कोस दूर है । वज्रांकुश वहाँका स्वामी है । उसके महलके पासके तालाबसे सुवर्ण-कमल लाकर जो कोई शशिप्रभाके कानोंमें पहनावेगा उसीको नागराज अपनी कन्या देगा । इस पर राजाने वंकु मुनिके पास जाकर उनसे सहायता माँगी।
दसवें सर्गमें---मन्त्रीका राजाको समझाना; राजाका रत्नचूड नामक नागकुमार द्वारा, जो शापसे तोता हो गया था, शशिप्रभाको सन्देश भेजना और नागकुमारका शापसे छूटना लिखा है। ___ ग्यारहवें सर्गमें-राजाका वंकु मुनिके आश्रममें जाना, रामाङ्गद द्वारा परमारोंकी उपत्तिका वर्णन और उनकी वंशावली है।
बारहवें सर्गमें-स्वप्नमें राजाका शशिप्रभासे मिलना वर्णित है ।
तेरहवें सर्गमें-राजाका वंकु मुनिसे बातचीत करना; विद्याधरराजके लड़के शशिखण्डको शापसे छुड़ाना; विद्याधरोंकी सेनाकी सहायता पाना
और राजाका वज्रांकुश पर चढ़ाई करना लिखा है। ___ चौदहवें सर्गमें -राजाका विद्याधर-सैन्यसहित आकाश मार्गसे रवाना होता; रमाङ्गदका वन आदिकी शोभा वर्णन करना और पाताल-गङ्गाके. तीर पर सेनासहित निवास करना वर्णित है ।
पन्दरवें सर्गमें-पाताल-गङ्गामें जलक्रीडाका वर्णन है ।
सोलहवें सर्गमें-शशिप्रभाका पत्र लेकर राजाके पास पाटलाका आना; राजाका उत्तर देना; रत्नचूड़का मिलना; रमाङ्गदको वज्रांकुशके पास सुवर्ण-कमल माँगने भेजना; उसका इनकार करना; रमाइन्दका वापस आना और युद्धकी तैयारी करना है।
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