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मालवेके परमार।
यशस्तिलक नामक पुस्तकके अनुसार मुञ्जने बन्दीगृहमें गौड़वहो नाम काव्यकी रचना की । परन्तु वास्तवमें यह काव्य कन्नोजके राजा यशोवर्माके सभासद वाक्पतिराजका बनाया हुआ है, जो ईसाकी सातवीं सदीके उत्तरार्धमें विद्यमान था।
पद्मगुप्त लिखता है कि वाक्पतिराज सरस्वतीरूपी कल्पलताकी जड़ और कवियोंका पक्का मित्र था । विक्रमादित्य और सातवाहनके बाद सरस्वतीने उसीमें विश्राम लिया था।
धनपाल उसको सब विद्याओंका ज्ञाता लिखता है' -जैसे 'यः
धनपाल उसकामन' इत्यादि ।
ताकी प्रशंसा की है
और भी अनेक विद्वानोंने मुञ्जकी विद्वत्ताकी प्रशंसा की है। 'राघव पाण्डवीय ' महाकाव्यका कर्ता, कविराज, अपने काव्यके पहले सर्गके अठारहवें श्लोकमें अपने आश्रयदाता कामदेव राजाकी लक्ष्मी और विद्याकी तुलना, प्रशंसाके लिए, मुञ्जकी लक्ष्मी और विद्यासे करता है। __ मुजके राज्यका प्रारम्भ विक्रम संवत् १०३१ के लगभग हुआ था। क्योंकि उसके जो दो ताम्रपत्र मिले हैं उनमें पहला वि० सं० १०३१, भाद्रपद सुदि १४ (९७४ ईसवी) का है। वह उज्जेनमें लिखा गया था। दूसरा वि० सं० १०३६, कार्तिकसुदि पूर्णिमा (६ नवंबर, ९७९ ईसवी) का है, जो चन्द्रग्रहण-पर्व पर गुणपुरामें लिखा. और भगवतपुरामें दिया गया थौँ । इन ताम्रपत्रोंसे मुञ्जका शैव होना सिद्ध होता है। - सुभाषितरत्नसन्दोह नामक ग्रन्थके कर्ता जैनपण्डित अमितगतिने जिस समय उक्त ग्रन्थ बनाया उस समय मुञ्ज विद्यमान था। यह उस
(१) तिलकमञ्जरी, पृ० ६ । (२) श्रीविद्याशोभिनो यस्य श्रीमुजादियती भिदा।।
धारापतिरसावासीदयं तावद्धरापतिः ॥ १८ ॥ सर्ग १ (३) Ind. Ant., Vol. VI. p. 51. (४) Ind. Ant., Vol. XIV, P.1063 Ind Inscr. No.9.
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