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मालवेके परमार।
आबू पर्वतपर, वसिष्ठके अग्निकुंण्डसे हुई थी । इसलिए मालवेके परमारोंका भी, आबूके परमारोंकी शाखामें ही होना निश्चित है। मालवेमें परमारोंकी प्रथम राजधानी धारा नगरी थी, जिसको वे अपनी कुल-राजधानी मानते थे। उज्जेनको उन्होंने पीछेसे अपनी राजधानी बनाया।
इस वंशके राजाओंका कोई प्राचीन हस्तलिखित इतिहास नहीं मिलता। परन्तु प्राचीन शिला-लेख, ताम्रपत्र, नवसाहसाङ्कचरित, तिलकमञ्जरी आदि ग्रन्थोंसे इनका जो कुछ वृत्तान्त मालूम हुआ है उसका संक्षिप्त वर्णन इस ग्रन्थमें किया जायगा ।
१-उपेन्द्र । इस शाखाके पहले राजाका नाम कृष्णराज मिलता है। उसीका दूसरा नाम उपेन्द्र था । यह भी लिखा मिलता है कि इसने अनेक यज्ञ किये तथा अपने ही पराक्रमसे बहुत बड़े राजा होनेका सम्मान पाया । इससे अनुमान होता है कि मालवाके परमारोंमें प्रथम कृष्णराज ही स्वतन्त्र और प्रतापी राजा हुआ । नवसाहसाङ्कचरितमें लिखा है कि उसका यश, जो सीताके आनन्दका कारण था, हनूमानकी तरह समुद्रको लाँघ गया । इसका शायद यही मतलब होगा कि सीता नामकी प्रसिद्ध विदुषीने इस प्रतापी राजाका कुछ यशोवर्णन किया है। (१) शङ्कितेन्द्रेण दधता पूतामवभृथैस्तनुम् । अकारि यज्वना येन हेमयूपाङ्किता मही ॥ ७८ ॥
(-नवसाहसाङ्कचरित, सर्ग ११) (२) भाटोंकी पुस्तकों में इसकी रानीका नाम लक्ष्मीदेवी और बड़े पुत्रका नाम अजितराज लिखा मिलता है । परन्तु प्रमाणाभावसे इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। किसी किसी ख्यातमें इसके पुत्र का नाम शिवराज भी लिखा मिलता है। (३) सदागतिप्रवृत्तेन सीतोछ्वसितहेतुना। हनूमतेव यशसा यस्याऽलयतसागरः ॥ ७ ॥
(-न० सा० च०, सर्ग ११]
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