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(१२)
'आसारे अज़म ' में लिखा है कि पहले 'मीखी' खतको आर्या कहते थे। यह नाम ठीक ही प्रतीत होता हैं; क्योंकि उसमें लिखी हुई भाषा आयभाषा संस्कृतसे मिलती हुई है।
दूसरी पुरानी लिपि पारसियोंकी पहलवी थी । इसके भी बहुतसे शिलालेख मिले हैं। इसके अक्षरोंका आकार कुछ कुछ खरोष्टी अक्षरोंसे मिलता हुआ है । परन्तु वह दाहिनी तरफसे लिखी जाती थी।
तीसरी लिपि जंद अवस्ताकी पुरानी प्रतियोंमें लिखी मिलती है । यह पुस्तक ज़रदश्ती अर्थात् अग्निहोत्री पारसियोंके धर्मकी है । इसकी लिपि अर्बी लिपिकी तरह दाहिनी तरफसे लिखी जाती थी । परन्तु इसमें लिखी इबारत संस्कृतसे मिलती है अरबीसे नहीं । बड़ा आश्चर्य है कि आर्यभाषा सिमेटिक ( अरबी ) जैसे अक्षरोंमें उल्टी तरफसे लिखी जाती थी । यह विषय बड़े वादविवादका है। इस लिये इस जगह इसके बारेमें ज्यादा लिखनेकी ज़रूरत नहीं है।
क्षत्रपोंके समयकी ब्राह्मी और खरोष्ठीका नकशा तो सहित्याचार्यजीने दे दिया है परन्तु ऊपर पहलवी और जंद अवस्ताका जिक्र आजानेसे इतिहासप्रेमियोकं, लिये हम उनके भी नकशे आगे देते हैं ।
क्षत्रपोंके समयके अङ्कोंका हिसाब भी, विचित्र ही था । जैसा कि पुस्तकसे प्रकट होगा। मारवाड़ राज्यके ( नागोर परगनेके मांगलोद गाँवमेंके ) दधिमथी माताके शिलालेखका संवत् २८९ भी इसी प्रकार खोदा गया है । जैसे:-( २०० )+ (८०)+(९)
क्षत्रपोंके यहाँ बड़े भाईके बाद छोटा भाई गद्दी पर बैठता था । इसी तरह जब सब भाई राज कर चुकते थे तब उनके बेटोंकी बारी आती थी। यह रिवाज तुकोसे मिलता हुआ था। टर्की ( रूम) में वंशपरम्परासे ऐसा ही होता आया है और आज भी यही रिवाज मौजूद है । ईरानके तुर्क बादशाहोंमें यह विचित्रता सुनी गई है कि जिस राजकुमारके मा और बाप दोनों रान घरानेके हों वही बापका उत्तराधिकारी हो सकता है । राजपूतानेकी मुसलमानी रियासत टोंकमें भी कुछ ऐसा है। कायदा है कि गद्दी पर नवाबका वही लड़का बैठ सकता है जो मा और बाप दोनोंकी तरफसे मीरखानी अर्थात् नवाब अमीरखाँकी औलादमें हो।
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