________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हैहय वंश ।
में जोगमको कृष्णका पुत्र लिखा है । तथा उसके पूर्वके नाम नहीं लिखे हैं । इसी तरह श० सं० ११०० (वि० सं० १२३५) के ताम्रपत्रमें कन्नमसे विज्जल और राजलका, तथा राजलसे जोगमका उत्पन्न होना लिखा है । इस प्रकार करीब करीब एक ही समयके लेख और ताम्रपत्रोंमें दिये हुए जोगमके पूर्वजोंके नाम परस्पर नहीं मिलते।
१-जोगम।। इसके पूर्वके नामोंमें गड़बड़ होनेसे इसके पिताका क्या नाम था यह ठीक ठीक नहीं कह सकते । इसके पुत्रका नाम पेर्माडि ( परमर्दि) था।
२-पेाडि ( परमर्दि)। यह जोगमका पुत्र और उत्तराधिकारी था । श० संबप्त १०५१ ( वर्तमान ) ( वि० सं० ११८५ ई० सं० ११२८) में यह विद्यमान था। यह पश्चिम सोलंकी राजा सोमेश्वर तीसरेका सामन्त था। तर्दवाड़ी जिला ( बीजापुरके निकट ) उसके अधीन था । इसके पुत्रका नाम विज्जलदेव था !
३-विज्जलदेव ।। यह पूर्वोक्त सोलंकी राजा सोमेश्वर तीसरेके उत्तराधिकारी जगदेकमल्ल दूसरेका सामन्त था । तथा जगदेकमल्लकी मृत्युके बाद उसके छोटे भाई और उत्तराधिकारी तैल (तैलप) तीसरेका सामन्त हुआ। तैल (तैलप ) तीसरेने उसको अपना सेनापति बनाया। इससे विज्जलका अधिकार बढ़ता गया । अन्तमें उसने तैलपके दूसरे सामन्तोंको अपनी तरफ मिलाकर उसके कल्याणके राज्य पर ही अधिकार कर लिया। श० सं० १०७९ (वि० सं० १२१४ ) के पहलेके लेखोंमें विज्जलको महामण्डलेश्वर लिखा है। यद्यपि श० सं० १०७९ से उसने अपना राज्य-.
(१) Bom. A. S. J. Vol. XVII. P. 289. Ind. Ant. Vol. IV. P, 74.
For Private and Personal Use Only