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भारतके प्राचीन राजवंश
चेदि संवत् ७९३ ( वि० सं० १०९९ ) का एक दानपत्रं कर्णका मिला है। और चे० सं० ८७४ ( वि० सं० १९९९ ) का उसके पुत्र यशः कर्णदेवकी ।
इन दोनों के बीच ७० वर्षका अन्तर होनेसे सम्भव है कि कर्णने बहुत समयतक राज्य किया होगा । उसके मरनेके बाद उसके राज्यमें झगड़ा पैदा हुआ। उस समय कन्नौज पर चन्द्रदेवने अधिकार कर लिया । तबसे प्रतिदिन राठौड़, कलचुरियोंका राज्य दबाने लगे ।
चन्द्रदेव वि० सं० १९५४ में विद्यमान था । अतः कर्णका देहान्त उक्त संवत् के पर्व हुआ होगा ।
११ - यशः कर्णदेव |
इसके ताम्रपत्र में लिखा है कि, गोदावरी नदीके समीप उसने आन्ध्रदेशके राजाको हराया । तथा बहुत से आभूषण भीमेश्वर महादेव के अर्पण किये । इस नामके महादेवका मन्दिर गोदावरी जिलेके दक्षाराम स्थान में है ।
भेड़ाघाट के लेखमें यशःकर्णका चम्पारण्यको नष्ट करना लिखा है । शायद इस घटनासे और पूर्वोक्त गोदावरी परके युद्ध से एक ही तात्पर्य्य हो । वि० सं० १९६१ के परमार राजा लक्ष्मदेवने त्रिपुरी पर चढ़ाई करके उसको नष्ट कर दिया ।
यद्यपि इस लेख में त्रिपुरी के राजाका नाम नहीं दिया है; तथापि वह चढ़ाई यशःकर्णदेव के ही समय हुई हो तो आश्चर्य नहीं; क्योंकि वि० सं० १९५४ के पूर्व ही कर्णदेवका देहान्त हो चुका था और यशः कर्ण
देव वि० सं० १९७९ के पीछे तक
विद्यमान था ।
( १ ) Ep. Ind. vol. II, P.305. ( ३ ) Ep. Ind. vol. II. P. 5. ( ५ ) Ep. Ind. vol. II. P. 188.
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( २ ) Ep. Ind. vol. II, P. 3 ( ४ ) Ep. Ind. vol. II. P. 11.
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