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भारतके प्राचीन राजवंग
आज्ञा दी कि, या तो भीमका आधा राज्य या कर्णका सिर ले आओ । यह सुन कर दुहपरके समय डामर बत्तीस पैदल सिपाहियों सहित कर्णके खेमे में पहुँचा और सोते हुए उसको घेर लिया । तब कर्णने एक तरफ सुवर्णमण्डपिका, नीलकण्ठ, चिन्तामणि, गणपति आदि देवता और दूसरी तरफ भोजके राज्यकी समग्र समृद्धि रख दी । फिर डामरसे कहा(( इसमें चाहे जौनसा एक भाग ले लो " । यह सुन सोलह पहर के बाद भीमकी आज्ञा से डामरने देवमूर्तियोंवाला भाग ले लिया ।
पूर्वोक्त वृत्तान्तसे भोजपर कर्णका हमला करना, उसी समय ज्वरसे भोजकी मृत्युका होमा, तथा उसकी राजधानीका कर्णद्वारा लूटा जाना प्रकट होता है ।
नागपुर से मिले हुए परमार राजा लक्ष्मदेवके लेखसे भी उपरोक्त बातकी सत्यता मालूम होती है । उसमें लिखा है कि भोजके मरने पर उसके राज्य पर विपत्ति छा गई थी । उस विपत्तिको भोजके कुटुम्बी उदयादित्यने दूर किया, तथा कर्णाटवालोंसे मिले हुए राजा कर्णसे अपना राज्य पुनः छीनो ।
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उदयपुर ( ग्वालियर ) के लेख से भी यही बात प्रकट होती है । हेमचन्द्रसरिने अपने बनाए याश्रय काव्यके ९ वें सर्गमें लिखा है कि:-“ सिंधके राजाको जीत करके भीमदेवने चेदि- राज कर्ण पर चढ़ाई की। प्रथम भीमदेवने अपने दामोदर नामक दतको कर्णकी सभा में भेजा । उसने वहाँ पहुँच करके कर्णकी वीरताकी प्रशंसा की । और निवेदन किया कि राजा भीम यह जानना चाहता है कि आप हमारे मित्र हैं या शत्रु ? यह सुन कर्णने उत्तर दिया- सत्पुरुषोंकी मैत्री तो स्वाभाविक होती ही है । इसपर भी भीमके यहाँ आनेकी बात सुनकर
( १ ) EP. Ind. vol. II, P, 185. ( २ ) EP. Ind. vol. I, P, 235.
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