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लेपप्रकरणम् ]
कर रक्त निकलवानेके पश्चात् सरफोकेकी जड़को Train पानी में पीसकर लेप करना चाहिये । ( ७४५५ ) शरपुङ्खायोगः (२) ( वै. म. र. | पटल ११ ) जठरोपरि परिलिप्तं शरपुङ्खं पातयेद्धि कृमीन् । सरफोंके को पीसकर पेट पर लेप करने से कृमि निकल जाते हैं ।
पञ्चमो भागः
( ७४५६ ) शारिवादिलेप: (१)
( भै. र. ; धन्व. । शिरोरोगा . ) शारिवोत्पलकुष्ठानि मधुकं चाम्लपेषितम् । सर्पिस्तैलयुतो लेपः सूर्यावर्त्तार्धभेदयोः ॥
शारिवा, नीलोत्पल, कूठ और मुलैठी समान भाग ले कर चूर्ण बनावें और उसे कांजी में पीस लें ।
इसमें घी और तेल मिला कर मस्तक पर लेप करनेसे सूर्यावर्त और अधोवभेदका नाश होता है ।
( ७४५७) शारिवादिलेप: (२) ( यो. र. १ शिरो. ) शारा मधुकवचाकृष्णोत्पलैस्तथा । लेपः काञ्जिकस्नेहः सूर्यावर्तार्धभेदयोः ॥ सारिवा, कूठ, मुलैठी, बच, पीपल और नीलोत्पल समान भाग ले कर सबको कांजीके साथ बारीक पीस कर घी या तेलमें मिला कर लेप करनेसे सूर्यावर्त और अधविभेदका नाश
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( ७४५८ ) शालिपर्ण्यादिलेपः
( व. से. । स्त्रीरोगा . )
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मूलञ्च शालिपण्यस्तु पिष्टं वा तण्डुलाम्बुना । offeeस्तिभगापात्सुखं नारी प्रसूयते ॥
शालपर्णीक जड़को चावल के पानी के साथ पीस कर नाभि, बस्ति और योनिपर लेप करने से स्त्रीको कष्ट-रहित प्रसव हो जाता है। 1
( ७४५९ ) शाल्मलीकण्टकादिलेपः (वृ. मा. | क्षुद्र. )
केवलान्यसा पिवा तीक्ष्णान् शाल्मलिकण्टकान आलिप्तं त्र्यहमेतेन भवेत्पद्मोपमं मुखम् ॥
के कांटांको दूधमें पीस कर लेप करनेसे २ दिनमें ही मुख कमल सदृश सुन्दर हो जाता है ।
शास्वणयोगः
( यो. र. । वातत्र्या. )
प्र. सं. ५७०० महा शाल्वण योग: देखिये '
( ७४६० ) शिखरिलेपः
( वृ. मा. । कुष्ठा. )
शिखरिरसेन सुपिष्टं मूलकवीजं प्रलेपतः सिध्मम् क्षारेण कदल्या वा रजनीमिश्रेण नाशमेति ॥
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चिरविटे के रस में मूली के बीजोंको, अथवा केले के क्षार और हल्दीको एकत्र पीस कर लेप करनेसे सिम नष्ट हो जाता है |