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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतपकरणम् ] पञ्चमो भागः १ सेर घी में यह क्वाथ और १० तोले | १ सेर घीमें यह कल्क और ४ सेर दूध मुलैठीका कल्क मिलाकर पकावें । जब पानी जल मिला कर दूध जलने तक पकायें; और फिर छानजाए तो घी को छान लें। कर सुरक्षित रक्खें । यह घृत वच्चोंकी खांसी, श्वास, रक्तपित्त, इसे लगानेसे कोष्ठगत नाडीव्रण (नासुर) तक पिपासा और मूर्छाको नष्ट करता है। | भी नष्ट हो जाता है। (७३९० ) श्यामावृतम् (२) (७३९२) श्रीवासघृतम् ( व. से. । रक्तपित्ता.) (व. से. । कुष्ठा.) श्यामाऽश्वमोरटानन्ता शर्कराभिः शृतं घृतम् । श्रीवासकं सर्जरसं लोधं कम्पिल्लक तथा । सर्वदोषहरं हृथं नस्यं नासागतेऽसृजि ॥ मनःशिला यवानी च गन्धपाषाणमेव च ॥ कल्क-काली निसोत, असगन्ध, क्षीर- ) पलिकैश्चूर्णितरेतघृतपस्थं प्रयोजयेत् । मोरटा, अनन्तमूल, और खांड २-२ तोले सूर्याशुपक्वमभ्यगाद् धोरां कछु व्यपोहति ।। लेकर सबको पानीके साथ एकत्र पीस लें। श्रीवास ( बिरोजा ), राल, लोध, कमीला, १ सेर घीमें यह कल्क और ४ सेर मनसिल, अजवायन और गन्धक; इनका चूर्ण पानी मिलाकर पानी जलने तक पकावें और ५-५ तोले, घी २ सेर और पानी ८ सेर ले कर छान लें। सबको एकत्र मिला कर धूपमें रख दें। जब पानी इसकी नस्य लेनेसे नासासे होने वाला सूख जाय तो घीको छान लें । रक्तस्राव बन्द होता है । यह घृत सर्वदोष नाशक इसकी मालिशसे घोर कच्छु (कुष्ठ मेद) मी हृद्य है। नष्ट हो जाता है । (७३९१) श्यामावृतम् (३) (७३९३ ) श्रेयस्यायतम् (व. से. । व्रणा.) (व. से. । दोगा.) श्यामात्रिभण्डी त्रिफलासु सिद्ध प्रेयसीशरादालाजीपायकोत्पस: हरिद्रया तिल्वकवृक्षण । बलावर्जूरकाकोलीमेदायुग्मय सापितम् ॥ घृतं सदुग्धं व्रणतर्पणेन सती मारिष सपिः पिचादोगनाशनम् । हन्याद्गति कोष्ठगतापि या स्यात् ।। क-हर, खांड, द्राक्षा (सुनका), जीवक, कल्क-काली निसोत, हर, बहेड़ा, आंबा : ऋषभक, कमल, लरेटीको जड़, खजूर, काकोली, हल्दी और लोध समान भाग मिश्रित १० मेदा और महामेदा समान भाग मिश्रित १० तोले तोले ले कर सबको एकत्र पीस लें। लेकर सबको एकत्र पानी के साथ पीस लें। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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