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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [शकारादि पानीयं द्विगुणं दत्वा धृतमस्थं विपाचयेत् । क्षीरीवृक्षों (पीपलवृक्ष, गूलर, बड़ आदि) की प्रदरे रक्तगुल्मे च रक्तपित्ते हलीमके कोपलें और छाल और मुलै ठीके कल्क तथा दूधके अरोचके ज्वरेऽजीणे पाण्डुरोगे मदे भ्रमे। साथ सिद्ध घृत स्वरभंगको नष्ट करता है। तरुणी त्वल्पपुष्पा वा या च गर्भ न विन्दति ॥ | (७३८१) शुण्ठीघृतम् (१) अहन्यहनि च स्त्रीणां भवति प्रीतिवर्धनम् । ( यो. र. । ग्रह.) शीतकल्याणकं नाम परमुक्तं रसायनम् ॥ . ! क्त रसायनम् ।। . घृतं नागरकल्केन सिद्धं वातानुलोमनम् । फरक-लाल कमल, पाक, खस, गेहूं, ग्रहणीपाण्डुरोगन प्लीहकासज्वरापहम् ॥ लाल चावल, मुद्गपर्णी, क्षीरकाकोली, खम्भारीकी सेठके कल्कसे पकाया हुवा घृत वातानुछाल, मुलैठी, खरैटीकी जड़, कंधी (अतिबला)की | लोमक, और संग्रहणी, पाण्डु, तिल्ली, खांसी, तथा जड़, नीलोत्पल, तालफल, विदारीकन्द, सोया, | ज्वर नाशक है । शालपर्णी, जीवक, हर्र, बहेड़ा, आमला, खीरके ( कल्क १० तोले, घी १ सेर, पानी ४ सेर।) बीज और केलेकी कली २॥-२॥ तोले लेकर (७३८२) शुण्ठीघृतम् (२) सबको पानीके साथ एकत्र पीस लें । ( यो. रे. । अशो. ) २ सेर धीमें यह कल्क, ८ सेर गायका दूध और ४ र पानी मिलाकर पकायें और पाक सिद्ध त्रिंशत्पलानि शुण्ठीनां जलद्रोणे विपाचयेत् । होने पर छान लें। तेन पादावशेषेण कल्के तासां पचेद्धृतम् ॥ | दुर्नामश्वासकासनं प्लीहपाण्ड्वामयापहम् । इसके सेवनसे प्रदर, रक्तगुल्म, रक्तपित, | विषमज्वरशान्त्यर्थं तृष्णारोचकनाशनम् ॥ हलीमक, अरुची, ज्वर, अजीर्ण, पाण्डु, मद, भ्रम, शुण्ठीधृतमिदं ख्यातं कृष्णात्रेयेण पूजितम् । ऋतुस्राव कम होना और गर्भ न रहना आदि रोग नागरेण जले पक्वं वस्तिकृक्षिगदापहम् ।। नष्ट होते हैं। १५० तोले सांठको कूटकर ३२ सेर पानी (मात्रा-१ से २ तोले तक । ) | में पका और ८ सेर पानी शेष रहने पर छान (७३८०) शुङ्गाद्यघृतम् लें । तदनन्तर उसमें २ सेर घी और २० तोले (व. से. । स्वरभे.) सेठिका कल्क मिलाकर पकावें । जब पानी जल शुझांस्त्वचं क्षीरवतां द्रुमाणां जाय तो धीको छान लें। सङ्कटथ दुग्धे विपचेत्तु तेन । इसके सेवनसे अर्श, श्वास, कास, प्लीहा, कल्केन यष्टी मधुकस्य सर्पिः पाण्डु, विषम ज्वर, तृष्णा और अरुचिको नाश सिद्धं पिबेत्तन्मधुशर्कराक्तम् ॥ होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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