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ग्रहणीरोंग ]
पञ्चमो भागः ( चि. प. प.)
५७७
(२४) ग्रहणी-रोगाधिकारः कपाय-प्रकरणम्
रस-प्रकरगम् ७२४६ शुण्ठ्यादिक्वायः आम, संग्रहणी, पेटमें ' ७५४३ शंखपोटलीरसः ग्रहणी, निर्बलता, शूल, सदा आम संचित होते
श्वास, कास,आमातिसार रहना
७५५१ शंखवटी ग्रहणीमें उत्तम, शूल, ७२५४ शृङ्गवेरक्वाथः कफज ग्रहणी
अजीर्ण नाशक ७२७२ श्रीफलादिकल्कः उग्र ग्रह गी । सरल योग ७५५२ , , ग्रहणी, शूल,अम्लपित्तादि
७५६३ शंखोदर रसः ग्रहणी, वायु, शूल, कफ, चूर्ण-प्रकरणम्
मलावरोव ७२८५ शठ्यादि चूर्णम् कफज ग्रहणी
७५७१ शम्बूकादिवटी वातज संग्रहणी (सरल ७३१३ शुण्ठ्यादि चूर्णम् कफज ग्रहणी नाशक,
योग) अग्निदीपक
७६२३ शीघ्रप्रभावरसः भयंकर ग्रहणी, आध्मान, ७८३२ सर्जरस , श्वेत तथा रक्त पक्व
वायु, मलत्यागके पश्चात् ग्रहणी, ( सरल उत्तम
भी हाजत बनी रहना। योग।)
८१२३ संग्रहणी रसः संग्रहणी, शूल, क्षय, ८४८९ हिंग्वादि । कफज ग्रहणी
वातव्याधि ८४९४ , , वातकफ ग्रहणी, विष
८१५९ स्वर्जिक्षारादि
योगः संग्रहणी, शोथ, शूल घृत-प्रकरणम्
८२०९ सारकल्पः ७३७० शतावरीघृतम् त्रिदोषज संग्रहणी रक्तस्राव
समस्त ग्रहणी विकार, ७३८१ शुण्ठी , ग्रहणी, खांसी, ज्वर, तिल्ली
शोथ, शूल ८७२४ क्षारघृतम् अग्निदीपक "८२३४ सुदर्शन रसः ग्रहणी आसवारिष्ट-प्रकरणम्
८२४२ सुधासार रसः आम, आमरक्त, संग्र७४३७ शर्करासवः संग्रहणी, उदावर्त,अरुचि,
हणी, हिक्का, आनाह मल मूत्र तथा उकार का
और अरुचि आदिको रुकना, अर्श, पाण्ड,
२-३ मात्रामें नष्ट
करता है। हृद्रोग
८२६० सूतराजः संग्रहणी, क्षय, अर्श
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