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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्रहणीरोंग ] पञ्चमो भागः ( चि. प. प.) ५७७ (२४) ग्रहणी-रोगाधिकारः कपाय-प्रकरणम् रस-प्रकरगम् ७२४६ शुण्ठ्यादिक्वायः आम, संग्रहणी, पेटमें ' ७५४३ शंखपोटलीरसः ग्रहणी, निर्बलता, शूल, सदा आम संचित होते श्वास, कास,आमातिसार रहना ७५५१ शंखवटी ग्रहणीमें उत्तम, शूल, ७२५४ शृङ्गवेरक्वाथः कफज ग्रहणी अजीर्ण नाशक ७२७२ श्रीफलादिकल्कः उग्र ग्रह गी । सरल योग ७५५२ , , ग्रहणी, शूल,अम्लपित्तादि ७५६३ शंखोदर रसः ग्रहणी, वायु, शूल, कफ, चूर्ण-प्रकरणम् मलावरोव ७२८५ शठ्यादि चूर्णम् कफज ग्रहणी ७५७१ शम्बूकादिवटी वातज संग्रहणी (सरल ७३१३ शुण्ठ्यादि चूर्णम् कफज ग्रहणी नाशक, योग) अग्निदीपक ७६२३ शीघ्रप्रभावरसः भयंकर ग्रहणी, आध्मान, ७८३२ सर्जरस , श्वेत तथा रक्त पक्व वायु, मलत्यागके पश्चात् ग्रहणी, ( सरल उत्तम भी हाजत बनी रहना। योग।) ८१२३ संग्रहणी रसः संग्रहणी, शूल, क्षय, ८४८९ हिंग्वादि । कफज ग्रहणी वातव्याधि ८४९४ , , वातकफ ग्रहणी, विष ८१५९ स्वर्जिक्षारादि योगः संग्रहणी, शोथ, शूल घृत-प्रकरणम् ८२०९ सारकल्पः ७३७० शतावरीघृतम् त्रिदोषज संग्रहणी रक्तस्राव समस्त ग्रहणी विकार, ७३८१ शुण्ठी , ग्रहणी, खांसी, ज्वर, तिल्ली शोथ, शूल ८७२४ क्षारघृतम् अग्निदीपक "८२३४ सुदर्शन रसः ग्रहणी आसवारिष्ट-प्रकरणम् ८२४२ सुधासार रसः आम, आमरक्त, संग्र७४३७ शर्करासवः संग्रहणी, उदावर्त,अरुचि, हणी, हिक्का, आनाह मल मूत्र तथा उकार का और अरुचि आदिको रुकना, अर्श, पाण्ड, २-३ मात्रामें नष्ट करता है। हृद्रोग ८२६० सूतराजः संग्रहणी, क्षय, अर्श For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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