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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षुद्ररोग] पञ्चमो भागः (चि. प. प्र.) तैल-प्रकरणम् लेप-प्रकरणम् ७९७७ सप्तश्छदादि तै० पद्मिनी कण्टक, चिप्प, ७४४१ शंखचूर्णादि . केश रंजक । व्यंग, जालगर्दभ ७४४६ शतपुष्पादि ,, , ८००९ स्नुही तैलम् विपादिका में चमत्कारी । ७४५९ शामलीकण्टकादि ८०१२ स्नुह्याचं रैलम् खालित्यमें अत्यन्त गुण लेपः सौन्दर्यवर्द्धक । कारी ७४७६ शिलापुष्पादि केशरंजक । ८५४४ हरिद्रादि ,, जतुमणि, नीलिका, ८०४४ सिद्वार्थादिलेपः मुखदूषिका । व्यंग, तिल, मुखदूषिका ८५५७ हरितालादि , व्यंग ->RoHKA(२२) गलगण्ड-गण्डमालाग्रन्थ्यधिकारः तैल-प्रकरणम् । ८०३३ सर्षपादि लेपः गण्ड, गण्डमाला, प्रन्थिको ७४०८ शाखोटकबिल्व तै० गण्डमाला शीघ्र नष्ट करता है। ८०३४ , , अपची घृत-प्रकरणम् | ८०६० सूर्यावर्तादि लेपः गलगण्डनाशक (छाला ७९६७ सौ रेश्वर घृतम् , अपची । डालता है।) ७९९२ सिन्दूराद्य , कष्टसाध्य गण्डमाला ८०६७ सौभाञ्जनादि ,, दुस्साध्य अपची ८५५० हिंस्राय , गलगण्ड ८५६९ हस्तिकर्णपला.... शादि लेपः गलगण्ड लेप-प्रकरणम् ८०७६ स्वर्जिकादि लेपः प्रन्थि, अर्बुद ७७४३ शंखादि लेपः कफज अर्बुदादि, ग्रन्थि ८५६५ हरीतक्यादि ,, कच्ची पक्की ग्रन्थि, विद्रधि (सरल योग) ७४५४ शरपुवायोगः अपची, अर्बुद ७४८३ शोभाञ्जनादि अपची को अवश्य नष्ट मिश्र-प्रकरणम् करता है। (सरल योग)। ७७३८ श्वेतापराजितामूलयोगः घोर अपची १०४ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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