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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८५० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [क्षकारादि (८७७२) क्षीरयोगः (६) क्षौद्रेण युक्तः कवलग्रहोऽयं (ग. नि. । अतिसारा. २; वृ. मा. । अतिसारा.)। समयान्वक्त्रगतानिहन्ति ।। यथाऽमृतं तथा क्षीरमतीसारेषु पूजितम् । कटेली, गिलोय, चमेलीकी कोंपल, दारुहल्दी चिरोत्थितेषु तत्पेयमपां भागैस्त्रिभिः शृतम् ।। | जवासा और त्रिफला समान भाग लेकर क्वाथ १ भाग गायके दूधमें ३ भाग पानी मिलाकर | बनावें। मन्दाग्नि पर पानी जलने तक पकावें। इसमें शहद मिलाकर कवल धारण करने यह दूध पुराने अतिसारमें अमृतके समान (कुल्ले करने ) से समस्त मुखरोग नष्ट होते हैं। गुणकारी है। (८७७६) क्षौद्रार्द्धभागघृतम् (८७७३-७४) क्षीरयोगः (७-८) (यो. र. ; व. से.। मूत्राघाता.) (ग. नि. | ज्वरा. १; रा. मा. । ज्वरा. २०) | क्षौद्रार्धभागः कर्तव्यो भागः स्यात्क्षीरसर्पिषोः। यः पिप्पलीमूलविमिश्रिताज्य शर्करायाश्च चूर्ण च द्राक्षाचूर्ण च तत्समम् ।। मध्वन्वितं सुक्वथितं च गव्यम् । स्वयंगुप्ताफलं चैव तथैवेक्षुरकस्य च । पयः पिबत्याशु विनाशमेतौ पिप्पलीनां तथा चूर्ण समभागं प्रदापयेत् ॥ हृद्रोगकासौ विषमज्वराश्च ॥ तदेकत्र मेलयित्वा खल्षेनोन्मध्य च क्षणम् । गव्यं पयो गोमयसारवारि | तस्य पाणितलं चूर्ण लिहेक्षीरं ततः पिबेत ॥ मिश्रं प्रदेयं विषमज्वरातौं । एतत्सर्पिः प्रयुधानः शुद्धदेहो नरः सदा । आज कदाचिन्ममृणप्रमृष्ट शुक्रदोषान येत्सर्वानेवापि भृशदुर्जयान् ॥ विश्वौषधोपेतमिम निहन्ति ।। जयेच्छोणितदोषांश्च पन्ध्यास्त्री गर्भमाप्नुयात्।। गायके पकाये हुवे दूधमें पीपलामूलका चूर्ण, | शहद आधा भाग, दूध १ भाग, घी १ भाग घी और शहद मिलाकर पोनेसे हृद्रोग, कास और | तथा खांड, द्राक्ष (किशमिश )का चूर्ण ( पिट्ठी), विषम ज्वरका नाश होता है। कौंचके बीजोंका चूर्ण, तालमखानेका चूर्ण और गायके अथवा बकरीके दूधमें गायके गोबरका | पीपलका चूर्ण १-१ भाग लेकर सबको एकत्र रस और सोंठका बारीक चूर्ण मिलाकर पीनेसे विषम मिलाकर मथनीसे मथें। ज्चरका नाश होता है। इसमेंसे १ तोला खाकर ऊपरसे दूध पोना (८७७५) क्षुद्रादिकवलग्रहः चाहिये । देहशुद्धिके पश्चात् इसे सेवन करनेसे (वा. भ. । उ. अ. २२) दुर्जय शुक्रदोष भी नष्ट हो जाते हैं । यह रक्तक्षुद्रागुडूची सुमनः प्रवाला दोषोंको भी नष्ट करता है एवं इसके सेवनसे दावीयवासत्रिफलाकषायः । वंध्याको पुत्र प्राप्त होता है। इति क्षकारादिमिश्र-प्रकरणम् D400 For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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