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८५० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[क्षकारादि (८७७२) क्षीरयोगः (६) क्षौद्रेण युक्तः कवलग्रहोऽयं (ग. नि. । अतिसारा. २; वृ. मा. । अतिसारा.)। समयान्वक्त्रगतानिहन्ति ।। यथाऽमृतं तथा क्षीरमतीसारेषु पूजितम् । कटेली, गिलोय, चमेलीकी कोंपल, दारुहल्दी चिरोत्थितेषु तत्पेयमपां भागैस्त्रिभिः शृतम् ।। | जवासा और त्रिफला समान भाग लेकर क्वाथ
१ भाग गायके दूधमें ३ भाग पानी मिलाकर | बनावें। मन्दाग्नि पर पानी जलने तक पकावें।
इसमें शहद मिलाकर कवल धारण करने यह दूध पुराने अतिसारमें अमृतके समान (कुल्ले करने ) से समस्त मुखरोग नष्ट होते हैं। गुणकारी है।
(८७७६) क्षौद्रार्द्धभागघृतम् (८७७३-७४) क्षीरयोगः (७-८) (यो. र. ; व. से.। मूत्राघाता.) (ग. नि. | ज्वरा. १; रा. मा. । ज्वरा. २०) | क्षौद्रार्धभागः कर्तव्यो भागः स्यात्क्षीरसर्पिषोः। यः पिप्पलीमूलविमिश्रिताज्य
शर्करायाश्च चूर्ण च द्राक्षाचूर्ण च तत्समम् ।। मध्वन्वितं सुक्वथितं च गव्यम् । स्वयंगुप्ताफलं चैव तथैवेक्षुरकस्य च । पयः पिबत्याशु विनाशमेतौ
पिप्पलीनां तथा चूर्ण समभागं प्रदापयेत् ॥ हृद्रोगकासौ विषमज्वराश्च ॥ तदेकत्र मेलयित्वा खल्षेनोन्मध्य च क्षणम् । गव्यं पयो गोमयसारवारि
| तस्य पाणितलं चूर्ण लिहेक्षीरं ततः पिबेत ॥ मिश्रं प्रदेयं विषमज्वरातौं । एतत्सर्पिः प्रयुधानः शुद्धदेहो नरः सदा । आज कदाचिन्ममृणप्रमृष्ट
शुक्रदोषान येत्सर्वानेवापि भृशदुर्जयान् ॥ विश्वौषधोपेतमिम निहन्ति ।। जयेच्छोणितदोषांश्च पन्ध्यास्त्री गर्भमाप्नुयात्।।
गायके पकाये हुवे दूधमें पीपलामूलका चूर्ण, | शहद आधा भाग, दूध १ भाग, घी १ भाग घी और शहद मिलाकर पोनेसे हृद्रोग, कास और | तथा खांड, द्राक्ष (किशमिश )का चूर्ण ( पिट्ठी), विषम ज्वरका नाश होता है।
कौंचके बीजोंका चूर्ण, तालमखानेका चूर्ण और गायके अथवा बकरीके दूधमें गायके गोबरका | पीपलका चूर्ण १-१ भाग लेकर सबको एकत्र रस और सोंठका बारीक चूर्ण मिलाकर पीनेसे विषम मिलाकर मथनीसे मथें। ज्चरका नाश होता है।
इसमेंसे १ तोला खाकर ऊपरसे दूध पोना (८७७५) क्षुद्रादिकवलग्रहः चाहिये । देहशुद्धिके पश्चात् इसे सेवन करनेसे
(वा. भ. । उ. अ. २२) दुर्जय शुक्रदोष भी नष्ट हो जाते हैं । यह रक्तक्षुद्रागुडूची सुमनः प्रवाला
दोषोंको भी नष्ट करता है एवं इसके सेवनसे दावीयवासत्रिफलाकषायः । वंध्याको पुत्र प्राप्त होता है।
इति क्षकारादिमिश्र-प्रकरणम्
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