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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] पञ्चमो भागः (८७३९) क्षयकेसरीरसः (२) शुद्ध पारद और शुद्ध गंधक, १-१ भाग, (वृ. नि. र. ; र. चं. । राजयक्ष्मा.) त्रिकुटाचूर्ण २ भाग, शंख भस्म ४ भाग, कौड़ी भस्म नेत्रलोचनचन्द्रेन्दुप्रमाणं भागमाहरेत् । ४ भाग और सुहागेको खील चौथाई भाग तथा इन समस्त औषधियों के बराबर काली मिर्चका चूर्ण वल्लिजं फटकी भृष्टा गरलं नवसागरम् ॥ लेकर प्रथम पारद गंधककी कज्जली बनावें और चूर्णमेषां सितायुक्तं गुलाई योजयेद्भिषक् । | फिर उसमें अन्य औषधियों का चूर्ण मिलाकर क्षयकेसरीनामायं रसः परम दारुणः॥ भली प्रकार खरल करें। काली मिर्च २ भाग, फिटकी की खील २ इसे घीके साथ मिलाकर १ मास तक सेवन भाग, शुद्ध विष १ भाग और नौसादर १ भाग | करनेसे क्षयका नाश होता है। लेकर सबको एकत्र खरल करके चूर्ण बनावें।। ___ मात्रा-धीरे धीरे बढ़ाकर ५ माशे की मात्रा मात्रा-आधी रत्ती । से सेवन कराना चाहिये। इसे खांडमें मिलाकर सेवन करनेसे क्षयका (८७४१) क्षयान्तकरसः नाश होता है। क्षयकेसरीरसः (३) (र. च. । राजय.) (भै. र. ; र. चं. ; र. रा. सु. । राजयक्ष्मा.) | लोहं च रससिन्दूरं प्रत्येकं कर्षसम्मितम् । प्र. सं. ५८२७ यस्मकेसरी रसः देखिये ।। मौक्तिकं स्वर्णभस्म च प्रत्येकं शाणसम्मितम् ॥ पाठांतरके अनुसार पारद और रससिंदूर का अभाव सिंदर का अभाव अमृतायाः कर्षमात्रं सत्त्वं च त्रिफला तथा । है तथा बकरीके दूधमें भी घोटनेके लिये लिखा है। कषपाद कुङ्कुम च कस्तूरा माषसाम्मता ।। (८७४०) क्षयशामकरसः अटरूषकषायेण त्रिदिनं भावयेत्पृथक् । | रसः क्षयान्तको नाम गुञ्जामात्र मधुप्लुतम् ॥ (र. चं. । राजयक्ष्मा. ; र. र. स. । अ. १४ ) सघृतो राजयक्ष्माणं जयेत्पाण्डं शिरोग्रहम् । तुल्यं पारदगन्धकं त्रिकटुक जीर्णज्वरं मेहरुजं प्रदरं वह्निमान्धकम् ॥ ताभ्यां रजः कम्बुजम् । सोमरोगं धातुदोषं वातश्लेष्मोद्भवं गदम् । तैस्तुल्यं च भवेत्कपर्द उक्ता मयानुपानश्च सर्वरोगान् क्षयं नयेत् ॥ भसितं स्मात्पारदाटकणम् ॥ लौह भस्म और रस सिन्दूर १-१ तोला; पादांशं सकलैः समानमरिचं मोती भस्म और स्वर्ण भस्म ४-४ माशे, गिलोयका लियात्क्रमात्साज्यकम् । सत १ तोला, त्रिफला चूर्ण १ तोला, केसर ३ माशे यावषिष्कमितं भवेत्पति और कस्तूरी १ माशा लेकर सबको एकत्र मिलादिनं मासाक्षयः शाम्यति । कर ३ दिन बासा (अडूसा)के रसमें खरल करें। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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