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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९६ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [हकारादि रोगका ठीक ठीक निदान करनेके पश्चात् । और उसे तपोकर घोड़ीके मूत्रमें बुझा दें। इसी उचित रीति से यह रस सेवन कराया जाय तो प्रकार हरतालके गोलेमें रखकर तपा तपा कर २१ धीरे धीरे रोग नष्ट होकर शरीरकी कान्ति बढ़ बार घोड़ीके मूत्रमें बुझानेसे उसकी भस्म हो जाती है। जाती है। (८६३८) हिरण्याख्यवलेहः यह भस्म रोग समूहको नष्ट करके बल, आयु (बृ. मा. । बाला.) और सौग्य की वृद्धि करती है तथा शरीरको वज्रके समान दृढ़ बना देती है। कुष्ठं वचाऽभया ब्राह्मी कनकं क्षौद्रसर्पिषा। (८६४०) हीरकमारणम् (२) वर्णायुष्कान्तिजननं लेहं बालस्य दापयेत् ।। (र. र. स. । पू. अ. ४) कूठ, बच, हर्र और ब्राह्मी; इनका चूर्ण तथा ब्रह्मज्योतिमुनीन्द्रेण क्रमोयं परिकीर्तितः । स्वर्ण भस्म १-१ भाग लेकर सबको एकत्र मिला नीलज्योतिर्लताकन्दे घृष्टं घर्मे विशोषितम् ॥ कर खरल करलें । वन भस्मत्वमायाति कर्मवज्ज्ञानवहिना ॥ इसे शहद और घीके साथ मिलाकर बाल होरेको नीलज्योति नामक लताके कन्दके फको चटानेसे वर्ण, आयु और कान्तिकी वृद्धि (रसके) साथ खरल करके धूपमें सुखा लें । इस होती है। विधिसे उसकी भस्म हो जाती है। यह विधि (मात्रा-१ रत्ती।) ब्रह्म-योति नामक मुनिकी बतलाई हुई है । (८६३९) हीरकमारणम् (१) . (८६४१) हीरकमारणम् (३) ( रसे. सा. सं. ; र. मं.) (र. र. स. । पू. अ. ४) त्रिसप्तकृत्वः सन्ततं खरमूत्रेण सेचयेत् । कुलत्यक्वाथसंयुक्तलकुचद्रवपिष्टया । मुद्गरैस्तालक पिष्ट्वा तद्गोले कुलिशं क्षिपेत् ।। शिलया लिप्तमूषायां वनं क्षिप्त्वा निरुध्य च ॥ प्रध्मातं वाजिमूत्रेण सिक्तं पूर्वक्रमेण तु। अष्टवारं पुटेसम्पग्विशुष्कैश्च वनोपलैः । भस्मी भवति तदनं वज्रवत्कुरुते तनुम् ॥ शतवारं ततो ध्मात्वा निक्षिप्त शुद्धपारदे ॥ आयुष्यं सौख्यजननं बलरूपप्रदं तथा । निश्चितं म्रियते वज्र भस्म वारितरं भवेत् ॥ रोगघ्नं मृत्युहरणं वज्रभस्म भवत्यलम् ॥ शुद्ध मनसिलको कुलथीके क्वाथमें मिले हुवे होरे को तपा तपा कर २१ बार गधीके लकुच ( बढल ) के रसमें घोटकर दो शरावों के मूत्रमें वुझावें । तदनन्तर हरतालको (पानीके साथ) भीतर उसका लेप कर दें और उन्हें सुखाकर उनमें पीसकर उसमें वह हीरा रखकर गोला बनावे । हीरे को रखकर यथाविधि सम्पुट बनावें एवं उसे For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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