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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८४ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [हकारादि स्वर में (पाठान्तरके अनुसार हल्दीके स्वरसमें ! जातीकोष लवङ्गश्च लौहमभ्रश्च टङ्गणम् । भी ) खरल करें और फिर सुखाकर सुरक्षित रक्खें। प्रत्येकं कर्षमानेन श्लक्ष्णचूर्णानि कारयेत् ॥ मात्रा-१॥ माशा (व्यवहारिकमात्रा- प्रस्थेन गन्यदुग्धस्य पचेन्मृद्वग्निना भिषक् । ३-४ रत्ती।) ' शर्करायाः दशपलं पाकसिद्धिविधानवित् ।। अनुपान-५ तोले चावलोंके पानी में ६ दामलेपावस्थायां क्षिपेच्चूर्ण विचक्षणः। निष्क (व्यवहारिक मा. ११ से ३ माशे) बकायनके पूजयेद्भास्करं शम्भु द्विजातीनभिवादयेत् ॥ बीजों को पीसकर उसमें ७॥ माशे घी मिलाकर शूलमष्टविधं हन्तिं अम्लपित्तं सुदुर्जयम् । पिलावें । अन्नद्रवभवं शूल कासं श्वासं तथा वमिम् ।। इसके सेवनसे नीलमेह नष्ट होता है। कान्तिपुष्टिकरो यो बलमेधाग्निवर्द्धनः। (८६०९) हरिशङ्कररसः (२) (वृहद्) ख्यातो हरीतकीखण्डः सर्वशूलनिकृन्तनः । ( र. रा. सु. । प्रमेहा. ; रसे. चि. म. । अ. ९) । हर्रका चूर्ण २० तोले, निसोतका चूर्ण २० तोले, तथा दालचीनी, इलायची, तेजपात, नागरसगन्धकलौहं च स्वर्णवङ्गश्च माक्षिकम् ।। केसर, नागरमोथा, तालीसपत्र, जीरा, जावत्री, लौंग, समभागन्तु सम्पिष्य वटिकां कारयेद्भिषक् ॥ लोहभस्म, अभ्रकभस्म और सुहागेकी खील, प्रत्येसप्ताहमामलद्रावैर्भावितोयं रसेश्वरः। कका चूर्ण ११ तोला; गोदुग्ध २ सेर और खांड हरिशङ्करनामायं गहनानन्द भाषितः ॥ ५० तोले लेकर प्रथम दूधको पकावें जब १ सेर प्रमेहान् विंशति हन्ति सत्यं सत्यं न संशयः।। . दूध रह जाय तो उसमें खांड डालकर चाशनी ___ शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, लोहभस्म, स्वर्णभस्म, बनावें और उसमें उपरोक्त समस्त द्रव्योंका चूर्ण बंगभस्म और स्वर्णमाक्षिकभस्म समान भाग लेकर , मिला दें। प्रथम पारे गंधककी कज्जली बनावें और फिर उसमें । अन्य ओषधियां मिलाकर सात दिन आमलेके रसमें : .. सूर्यदेव और शंकरकी पूजा करके तथा द्विजाखरल करके (२--२ रत्तीकी ) गोलियां बना लें। तियाँको नमस्कार करके इसे सेवन करना चाहिये। यह रस २० प्रकारके प्रमेहको नष्ट कर देता इसके सेवनसे दुर्जय अम्लपित्त, अन्नद्रवशूल, है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। तथा अन्य सब प्रकारके शूल, कास, श्वास और (८६१०) हरीतकीखण्डः वमनका नाश तथा कान्ति, पुष्टि, बल, मेधा (भैः र. । शूला.) और अग्निकी वृद्धि होती है। यह हरीतकी खण्ड चतुः पलं हरीतक्याखितायाश्चतुःपलम् ।। हृद्य भी है। चतुर्जातं समुस्तश्च तालीशं जीरकं तथा ॥ . (मात्रा-१ तोला । ) For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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