________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
गुग्गुलुपकरणम् ]
पञ्चमो भागः
४५९
-
अथ हकारादिगुग्गुलुप्रकरणम्
(८५२४) हरीतक्यादिगुग्गुलुः । हरं, सोंठ और विधारेकी जड़का चूर्ण १-१ (वृ. नि. र. । आमवाता.)
भाग लेकर सबको ६ भाग शुद्ध गूगलमें मिला
कर आवश्यकतानुसार अण्डीका तेल मिलाकर १ हरीतकी नागरं च वृद्धदारुसमं समम् । दिन खरल करे। द्विगुणं गुग्गुलं दवा तैलमेरण्डजं तथा ॥ इसके सेवनसे आमवातका नाश होता है । मदयेदिनमेकं तु भक्षयेदामवातनुत् ॥
(मात्रा--३ माशे। अनुपान--उष्ण जल।) इति हकारादिगुग्गुलु-प्रकरणम्
- MHअथ हकाराद्यवलेहप्रकरणम्
हरिद्राखण्डः
हन्त्यम्लपित्तं शूलञ्च पडशीस्यनिलामयम् । रस प्रकरणमें देखिये
कोष्ठवातं कटीशूलमानाइमपि दारुणम् ॥ . हरिद्राचवलेहः
हर्र, बहेड़ा, आमला, नागरमोथा, दालचीनी,
इलायची, तेजपात, नागकेसर, अजवायन, सेठ, (ग. नि.। पाण्ड्वा .)
कालीमिर्च, पीपल, धनिया, मुलैठी, सोया और रस प्रकरणमें देखिये।
लौंग; इनका चूर्ण ११-१तोला तथा निसोत (८५२५) हरीतकीखण्डः (१)
और सनायका चूर्ण १०-१० तोले एवं हरंका (भै. र. ; धन्व. । शूला.) चूर्ण सबके बराबर ( ४० तोले ) और खांड इन त्रिफलाब्द चतुर्जातं यमानीकटुकत्रयम । सबसे दो गुनी ( २ सेर ) लेकर खांडकी चाशनी धान्यं मधुरिका चैव शतपुष्पा लवङ्गकम् ॥ बनाकर उसमें समस्त चूर्ण मिला दें। प्रत्येकं कार्षिकं ग्राह्यं त्रिता स्वर्णपत्रिका। इसे उष्ण दूधके साथ सेवन करनेसे अम्लपलद्वन्द्वप्रमाणेन सर्वतुल्या हरीतकी ॥ पित्त, शूल, ६ प्रकारको अर्श, वातज रोग, कोष्ठ यावन्त्येतानि चूर्णानि सिता तद्विगुणा मता। गत वायु, कटिशूल, और आनाहका नाश होता है। दत्त्वैतानि विधानेन क्षीरेणोष्णेन सम्पिबेत् ॥ ( मात्रा-~-१ तोला । )
For Private And Personal Use Only