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भारत - भैषज्य रत्नाकरः
हींग १ भाग, चव्य २ भाग, बिडलवण ३ भाग, सांठ ४ भाग, काला जीरा ५ भाग और - पोखरमूल ६ भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
यह चूर्ण आमवातको नष्ट करता है । ( मात्रा -- २-३ माशा । )
(८५१५) हिङ्ग्ग्वाद्यं द्विरुत्तरं चूर्णम्
(ग. नि. । चूर्णा. ३ ; बृ. मा. । आनाहा. ; वृ. नि. र. । आनाहा. )
द्विरुत्तरं हिङ्गुवचामिकुष्ठं
सुवर्चिका चैव विडङ्गचूर्णम् । सुखाम्बुनानाहविषूचिकार्ति हृद्रोगुल्मोर्ध्वसमीरणनम् ॥
हींग १ भाग, बच २ भाग, चीतामूल ४ भाग, कूठ ८ भाग, संचल ( काला नमक ) १६ भाग और बायबिडंग ३२ भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
इसे मन्दोष्ण जलके साथ सेवन करने से अफारा, विसूचिका, हृद्रोग, गुल्म और ऊर्ध्ववायुका नाश होता है ।
( मात्रा – ३ माशा | )
१ वृ. मा. में. चीतामूलका अभाव है
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(८५१६) हुताशः चूर्णम् (वै. म. र. । पटल ६ ) मणिमन्थजीरकाजमोदमागधौषधैवर्धितैः क्रमेण तैः समं हरीतकीरज: । पाचनं विरेचनं प्रदीपनं प्ररोचनं पायुकीलनाशनं हुताशनाहयं तु तत् ॥
सेंधा नमक १ भाग, जीरा २ भाग, अजमोद ३ भाग, पीपल ४ भाग, सोंठ ५ भाग और हर्र १५ भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
[ हकारादि
यह चूर्ण पाचन, रेचक, अनि दीपक, रोचक और अर्शके मस्सोंको नष्ट करने वाला है । ( मात्रा -- ३-४ माशे । )
(८५१७) हीबेरादिचूर्णम् ( व. से. ; वृ. नि. र. । बालरो. ) बेरशर्कराक्षौद्रं पीतं तण्डुलवारिणा । शिशोः सर्वातिसारनं तृट्छर्दिज्वरनाशनम् सुगन्धवाला और खांड समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
इसे शहद में मिलाकर चावलोंके पानी के साथ सेवन करनेसे बच्चोंका अतिसार, तृषा, छर्दि और ज्वर नष्ट होता है।
इति इकारादि चूर्णमकरणम्
( मात्रा - - १ रत्ती से १ माशा तक । ) (बृहन्निघण्टु रत्नाकर में इस योगको रक्तातिसार, कास, श्वास और वमन नाशक लिखा है | )
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