SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 464
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम् ] पश्चमो भागः ४४२ - (८४८९) हिग्वादिचूर्णम् (२) क्रमथा जनितरजः ( ग. नि. । ग्रहण्य. ३) __ कासं वासं जयेत्सघृतम् ॥ हिपृक्षारौ समौ पथ्याशुण्ठीपिप्पलिचित्रकाः । हींग १ भाग, बच २ भाग, चीतामूल ३ द्वयंशास्तत्पूर्ववत्पीतं श्लेष्मग्रहणिदोषजित् ॥ भाग, सोंठ ४ भाग, अजवायन ५ भाग, हर्र ६ हींग और जवाखार १-१ भाग तथा हर्र, भाग, पीपल ७ भाग और निसोत ८ भाग लेकर सोंठ, पीपल और चीतामूल २-२ भाग ले कर चूर्ण बनावें। चूर्ण बनावें। __इसे घोके साथ सेवन करने से कास और इसे सेवन करने से कफज ग्रहणी रोग नष्ट । श्वासका नाश होता है। होता है। (मात्रा-१॥ माशा ।) (अनुपान-दही या मद्य । ) (८४९२) हिङ्ग्वादिचूर्णम् (५) मात्रा-१। माशा । (वैद्यामृत । वि. ५ विषूचिका.) (८४९०) हिङ्ग्वादिचूर्णम् (३) हितग्रगन्धाविडनागरदीप्यपथ्या (भै. र. ; वृ. मा. ; व. से. । गुल्मा.; वृ. नि. र.। ___ चूर्ण विभागपरिवदितमेतदाशु । वातव्या. उदावर्ता.; यो. र. । गुल्मा.) आनाहशूलगुदजानलमान्यगुल्महिङ्गनगन्धा विडशुण्ठयजाजी विष्टम्भकोदरविचिहरं समस्तम् ॥ हरीतकीपुष्करमूलकुष्ठम् । हींग १ भाग, बच २ भाग, बिडनमक ३ भागोत्तरं चूर्णितमेतदिष्टं . भाग, सेठ ४ भाग, अजवायन ५ भाग और हरै गुल्मोदराजीर्णविसूचिकासु ॥ ६ भाग लेकर चूर्ण बनावें । हींग १ भाग, बच २ भाग, विडनमक ३ यह चूर्ण अफारा, शूल, अर्श, अग्निमांद्य, गुल्म, भाग, सोंठ ४ भाग, जीरा ५ भाग, हर्र ६ भाग, । मलावरोध और विसूचिकाको शीघ्र ही नष्ट कर पोखरमूल ७ भाग और कूठ ८ भाग लेकर चूर्ण देता है। बनावें। . (मात्रा-१॥ माशा ।) यह चूर्ण गुल्म, उदररोग, अजीर्ण, और (८४९३) हिङ्ग्वादिचूर्णम् (६) विसूचिका को नष्ट करता है। ( भै. र. । शूला.; वृ. मा.; च. द. । शूला. २६; (मात्रा-१॥ माशा ।) - ग. नि. | वाता. १९) (८४९१) हिग्वादिचूर्णम् (४) हिङ्गु सौवर्चलं पथ्या विडसैन्धवतुम्बुरु। (वै. म. र. । पटल ३) पौष्करश्च पिबेच्चूर्ण दशमूलयवाम्भसा ॥ हिगुवचामिमहौषधदीप्य पार्श्वहृत्कटिपृष्ठां सशूले तन्द्रापतानके । __ कपथ्याकणात्रिवृताम् । शोथे श्लेष्मप्रसेके च कर्णरोगे च शस्यते ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy