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४४० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[हकारादि अथ हकारादिचूर्णप्रकरणम्
-re are(८४४७) हरिद्रकवृक्षयोगः
हल्दी, काली मिर्च, मुनका, गुड़, रास्ना, ( वृ. नि. र. । ज्वरा.) पीपल और सांठ समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । सहरिद्रयवक्षारौ पीत्वा चोष्णेन वारिणा।।
है इसे सरसों के तेलमें मिला कर सेवन करनेसे
भयंकर स्वास भी नष्ट हो जाता है । नानादेशसमुद्भूतं वारिदोषपपोहति ॥ हल्दी और जवाखार समान भाग ले कर।
(मात्रा-|-२ माशा।) चूर्ण बनावें।
(८४५०) हरिद्रादिचूर्णम् (२) इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे नाना
(वृ. नि. र. । कामला.) देशांके जलका विकार नष्ट हो जाता है। निशाचूर्ण कर्पमितं दध्नः पलमितं तथा । (मात्रा-१॥ माशा)
प्रातः संसेवनं कुर्यात् कामलानाशनं परम् ॥ ... (८४४८) हरिद्रादिक्षारः
प्रातःकाल ११ तोला ( व्यवहा. मा. ३-४ (च. सं. । चि. स्था ६ अ. १९ ग्रहण्य. ;
| माशा ) हल्दीके चूर्ण को ५ तोले दहीमें मिलाकर
। सेवन करनेसे कामला रोग नष्ट हो जाता है। व. से. । ग्रहण्य.) द्वे हरिद्रे वचा कुष्ठं चित्रकः कटुरोहिणी। (८४५१) हरिद्रादियोगः (१) मुस्तं च वस्तमत्रेण सिद्धः क्षारोऽग्निवर्द्धनः ॥ ( वृ. यो. त. । त. १०२; यो. र. । अश्मय. ; _हल्दी, दारुहल्दी, बच, कूठ चीता, कुटकी यो. र. ; 2. नि. र. । मूत्रकृ.) और नागरमोथा समान भाग ले कर यथाविधि भस्म । यः पिबेद्रजनी सम्यक्सगुडां तुषवारिणा । करके बकरीके मूत्रमें घोलकर क्षार बनावें । तस्याऽऽशु चिररूढाऽपि यात्यस्तं मेढ़ शकेरा॥
इसे बकरीके मूत्रके साथ सेवन करनेसे अग्नि (३-४ माशा) हल्दी के चूर्णको (१ तोला) की वृद्धि होती है।
गुड़में मिला कर कांजीके साथ सेवन करनेसे पुरानी (मात्रा-२-३ माशे । )
शर्करा भी नष्ट हो जाती । (८४४९) हरिद्रादिचूर्णम् (१) (८४५२) हरिद्रादियोगः (२) ( यो. र. । श्वासा.)
(वै. म. र. । पटल ७ ) हरिद्रा मरिचं द्राक्षा गुडो स्ना कणा सटी।। प्रातरेव रजनी मुभक्षिता कटुतैले लिहन्हन्याच्छासान्प्राणहरानपि ॥ मेहविंशतिविनाशिनी ध्रुवम् ।।
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