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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिश्रप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः •४२९ अम्लदना युतं यत्रात्स्नात्वाऽऽदौ शिरसि क्षिपेद् सूरणकन्द (जिमीकन्द) को चाकूसे छीलकर मर्दयेद्धटिकाध तु वेष्टयमेरण्डपत्रकैः ।। चिकनी बत्ती बनावें । इसे नीबूके रसमें भिगोकर शिरः संवेष्टय वस्त्रेण प्रातः स्नानं समाचरेत् । | फिर घीमें भिगोकर गुदामें रखने से अर्शके मस्से इत्येवं त्रिदिनं यत्नात्कृत्वा केशांश्च रञ्जयेत् ॥ और गुदाके कृमि नष्ट हो जाते हैं। __सोसेका चूर्ण ५ तोले, शंख चूर्ण १० तोले (८४०१) सैन्धवादियोगः और हर्र का चूर्ण ३॥ माशे लेकर सबको एकत्र मिलाकर १ दिन खट्टी दहीके साथ मर्दन करें । (वृ. नि. र. । बालरोगा.) तदनन्तर स्नान करके ( बालोंको अच्छी तरह साफ़ बालो यश्चिरजातः स्तन्य करके ) यह लेप लगावें और आधी घड़ी तक गृह्णाति नोदितस्तस्य । मालिश करनेके बाद अरण्डका पत्ता बांध दें। सैन्धवधात्रीमधुघृतपथ्यादूसरे दिन प्रातःकाल स्नान कर लें। इसी प्रकार कल्केन घर्षयेजिहाम् ॥ ३ दिन करनेसे बाल काले हो जाते हैं। यदि नवजात शिशु उत्पन्न होनेके पश्चात् (८३९९) सूत्रवति योगः यथेष्ट समय बीत जाने पर भी दूध न पिये तो सेंधा नमक, आमला, और हर के समान भाग (यो. त. । त. ६०) मिलित चूर्णको घी और शहदमें मिलाकर उसकी आरग्वधनिशा कालाचूर्णाज्यक्षौद्रसंयुता। जिहापर मलना चाहिये। सूत्रवर्तिव्रणे योज्या शोधिनी गतिनाशिनी ॥ __ अमलतासकी छाल, हल्दी और मजीठ समान (८४०२) सैन्धवाद्याश्च्योतनम् (१) ८ भाग लेकर चूर्ण बनावें और उसमें शहद तथा घी ( ग. नि. । नेत्र. ३) मिलाकर उसे सूतकी बत्ती पर लपेट लें । यह बत्ति सिन्धूत्थरोधसितजीरकतिन्तिडीकब्रणमें रखनेसे ब्रण शुद्ध हो जाता है और आगे पत्रं नवं दृषदि चूर्णितमम्बरस्थम् । नहीं बढ़ता। आश्चोतनं नयनयोरसकृत्प्रयुक्त -- (८४००) मुरणवतिः मेतद्धि रुक्श्वयथुरोगविकारहारि ॥ ( हा. सं. । स्था. ३ अ. ११) सेंधा नमक, लोध, सफेदजीरा और इमलीके मूरणकन्दकवर्तिर्विधेया नवीन पत्र (कोंपल) समान भाग ले कर पत्थर पर चाम्लरसेन घृतेन च लिप्त्वा । (पानीके साथ) पोसकर कपड़े में बांधे। इस पोटलीको रोगगुदे गुदकीलकमाशु बार बार आंखमें निचोड़ने से आंखांकी पीड़ा और नाशयते गुदजांश्च क्रिमीश्च ॥ सूजनका नाश होता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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