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४०२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ सकारादि संभालू और भंगरेके रसमें ३-३ दिन खरल करके (८३१७) स्वच्छन्दभैरवरसः (२) ८-८ रत्तीकी गोलियां बना लें।
(रसे. सा. सं. । ज्वरा.) इसके सेवनसे समस्त वातव्याधियां नष्ट होती हैं।
रसगन्धकयोः शाणं प्रत्येकं कजलीकृतम् ।
सुवर्णमाक्षिकं शाणं शुद्धश्चैकत्र कारयेत् ॥ अनुपान-लहसन, सेंधानमक और तेल
रुद्रजटा निशुन्दा च नागदामलकी तथा । समान भाग ले कर तीनोंको एकत्र मिला कर १।
विषकण्टालिका चैषां स्वरसं शाणमात्रकम् ॥ तोलेकी मात्रानुसार खाना चाहिये ।
दत्वा संशोध्य सम्म कार्या मुद्गसमा वटी। ( व्यवहारिक मात्रा-१ से २ रत्ती)
आर्द्रकस्य रसैः पेया जीरकश्चानुभक्षयेत् ॥ (८३१६) स्वच्छन्दभैरवरसः (१) स्वच्छन्दो भैरवाख्योयं सन्निपातोग्रहन्मतः ।
(र. प्र. सु. । अ. ८) | ग्रहणी मूतिकातङ्कं नाशयेदविचारतः ॥ सूतं गन्धं ताप्यकं तालकं वै
____ शुद्ध पारद और गन्धक ५-५ माशे ले कर निर्गुण्डीवड्यूषणं चाग्निमन्यम् । कज्जली बनावें फिर उसमें ५ माशे स्वर्णमाक्षिक पथ्योपेतं शाणमा पृथक् स्यात्
भस्म मिला कर उसमें ५-५ माशे रुद्रजटा, खल्वे पिष्ट्वा बीजपूरद्रवेण ॥
निशुन्दा (निर्गुण्डी ?), हर्र, आमला और विषकचूर्ण कृत्वा भक्षयेन्मापमात्र
ण्टालिकाका रस मिलाकर खरल करें तथा मूंगके ____कृष्णासर्पिः क्षौद्रयुक्तं प्रलीढम् । समान गोलियां बनावें । सर्वान् हन्याच्चातिसारान् सुघोरा
इनमेंसे १ गोली अदरकके रसमें मिलाकर नाम वर्मान्धतां चापि सद्यः ॥ । पिलावें और ऊपरसे जीरेका चूर्ण खिलावें । शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, स्वर्ण गाक्षिक भस्म, इसके सेवनसे उग्र सन्निपात, ग्रहणी और शुद्ध हरताल, संभालु, चीता, मिर्च, अरणी और सूतिका रोगका नाश होता है। हर्र ५-५ माशे ले कर प्रथम पारे गन्धककी । (८३१८) स्वच्छन्दभैरवरसः (३) कजली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका | (भै. र. ; वै. र. ; र. का. घे. । ज्वरा ) चूर्ण मिला कर जम्बीरी नीबूके रसमें खरल करें।
| समभागांश्च सय पारदामृतगन्धकान् । मात्रा-१ माशा।
| जातीफलस्य भागार्द्ध दवा कुर्याच कज्जलीम् ।। • इसे पीपलके चूर्ण तथा शहद और धीके साथ सर्वार्द्ध पिप्पलीचूर्ण खल्लयित्वा निधापयेत् । सेवन करनेसे समस्त प्रकारके घोर अतिसार, आम गुञ्जार्द्धपमितं चैव नागवल्लीदलैः सह । और अग्निमांधका नाश होता है। | आर्द्रकस्य रसेनापि द्रोणपुष्पीरसेन वा ॥
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