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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] पनमो भागः - सौद्रयुक्तमपि वल्लमात्र निबद्धय तां सेक्य मासयुग्म भक्षितं च ह्यति ,हितं जयेत् ॥ दिनोदये स्पर्शविकारशान्त्यै ॥ तोयमेकपलमत्र मात्रया शुद्ध हरताल ८ भाग, रससिन्दूर १ भाग पानतोऽप्यखिल मेहहारकम् ॥ और भांगका चूर्ण १ भाग ले कर सबको एकत्र रस सिन्दूर, बीजाबोल, हरताल भस्म और / मिला कर खरल करें और फिर सबके बराबर गुड़में ताम्र भस्म समान भाग ले कर सबको एकत्र | | मिला कर गोलियां बना लें। मिलाकर आकके दूधमें अथवा उसके पत्तोंके रसमें इन्हें प्रातःकाल सेवन करना चाहिये । खरल करके सुरक्षित रक्खें। इनके सेवनसे स्पर्शवातका नाश होता है। मात्रा-३ रत्ती ( व्यवहारिक मात्रा- | ( व्यवहारिक मात्रा-२ रत्ती ।) १ रत्ती) स्पर्शवातान्तकृद्धटी इसे शहदके साथ सेवन करनेसे स्थूलता और प्र. सं. ६१०५ “ रसादि गुटी (२)" समस्त प्रमेहोंका नाश होता है। देखिये। अनुपान-५ तोले पानी। (८३११) स्पर्शवातारिरसः (१) स्पर्शगजसिंहरसः (पलाशादि वटी) (स्पर्शवातारि रसः) (र. सा. सं. , र. चं. , र. रा. सु. । वात रो. , र. (र. को. धे. । कुष्टा.) र. स. । अ. २१) प्र. सं. ६१०५ “ रसादि गुटी (२)" पलाशबीजोत्यरसेन सूतं देखिये। गन्धेन युक्तं त्रिदिनं विमर्च । र. का. धे. में आठ भाग पारद भस्म और श्लक्ष्णीकृतन्तद्विषतिन्दुबीजं ३ भाग शुद्ध पारद है तथा कुचला १२ भाग है संयोजयेदस्य कलापमाणम् ।। एवं चीते और भिलावेके स्थानमें १-१ भाग मासद्वयं निष्कमितं प्रयवातेजपात और इन्द्रायणकी जड़ है। दीसि हन्त्याशु नियोजनीयम् । वातरक्तं तथा शोथमस्पर्शाख्यानिलामयम् ॥ (८३१०) स्पर्शवातमरसः ___ समान भाग शुद्ध पारे और गंधककी कज्जली (र. र. स. । उ. अ. २१) करके उसे पलाशके बीजोंके रसमें खरल करें और तालं रसेनाष्टगुणं जयांचं फिर उसमें उस चूर्णका सोलहवां भाग शुद्ध विमर्च यवादगुलिकां मुडेन। 'कुचलेका चूर्ण मिला कर खरल करें। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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