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रसप्रकरणम् ]
पनमो भागः
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सौद्रयुक्तमपि वल्लमात्र
निबद्धय तां सेक्य मासयुग्म भक्षितं च ह्यति ,हितं जयेत् ॥ दिनोदये स्पर्शविकारशान्त्यै ॥ तोयमेकपलमत्र मात्रया
शुद्ध हरताल ८ भाग, रससिन्दूर १ भाग पानतोऽप्यखिल मेहहारकम् ॥ और भांगका चूर्ण १ भाग ले कर सबको एकत्र रस सिन्दूर, बीजाबोल, हरताल भस्म और / मिला कर खरल करें और फिर सबके बराबर गुड़में ताम्र भस्म समान भाग ले कर सबको एकत्र | | मिला कर गोलियां बना लें। मिलाकर आकके दूधमें अथवा उसके पत्तोंके रसमें इन्हें प्रातःकाल सेवन करना चाहिये । खरल करके सुरक्षित रक्खें।
इनके सेवनसे स्पर्शवातका नाश होता है। मात्रा-३ रत्ती ( व्यवहारिक मात्रा- | ( व्यवहारिक मात्रा-२ रत्ती ।) १ रत्ती)
स्पर्शवातान्तकृद्धटी इसे शहदके साथ सेवन करनेसे स्थूलता और
प्र. सं. ६१०५ “ रसादि गुटी (२)" समस्त प्रमेहोंका नाश होता है।
देखिये। अनुपान-५ तोले पानी।
(८३११) स्पर्शवातारिरसः (१) स्पर्शगजसिंहरसः
(पलाशादि वटी) (स्पर्शवातारि रसः) (र. सा. सं. , र. चं. , र. रा. सु. । वात रो. , र. (र. को. धे. । कुष्टा.)
र. स. । अ. २१) प्र. सं. ६१०५ “ रसादि गुटी (२)" पलाशबीजोत्यरसेन सूतं देखिये।
गन्धेन युक्तं त्रिदिनं विमर्च । र. का. धे. में आठ भाग पारद भस्म और
श्लक्ष्णीकृतन्तद्विषतिन्दुबीजं ३ भाग शुद्ध पारद है तथा कुचला १२ भाग है
संयोजयेदस्य कलापमाणम् ।। एवं चीते और भिलावेके स्थानमें १-१ भाग
मासद्वयं निष्कमितं प्रयवातेजपात और इन्द्रायणकी जड़ है।
दीसि हन्त्याशु नियोजनीयम् ।
वातरक्तं तथा शोथमस्पर्शाख्यानिलामयम् ॥ (८३१०) स्पर्शवातमरसः
___ समान भाग शुद्ध पारे और गंधककी कज्जली (र. र. स. । उ. अ. २१)
करके उसे पलाशके बीजोंके रसमें खरल करें और तालं रसेनाष्टगुणं जयांचं
फिर उसमें उस चूर्णका सोलहवां भाग शुद्ध विमर्च यवादगुलिकां मुडेन। 'कुचलेका चूर्ण मिला कर खरल करें।
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