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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org -यैषज्य -‍ ३९६ एला जातीफलं मांसी पत्रं तालीशकेशरम् । गन्धमात्रा शटी यष्टी लव रक्तचन्दनम् || एतानि समभागान शुण्ठीचूर्णन्तु तत्समम् । सिता द्विगुणिता तत्र गव्यक्षीरं चतुर्गुणम् ॥ तोलप्रमाणं दातव्यं दुग्धेनापि जलेन वा । अम्लपित्तं निहन्त्येतदरोचक: नेसूदनम् ॥ शूलहृद्रोगमनं कण्ठदाहं नियच्छति । etter शिरःशूलं मन्दानि विनाशयेत् ॥ हृच्छूलं पार्श्वकुक्षिस्वस्तिशूलं गुदे रुजम् । बलपुष्टिकरश्चैव वशीकरणमुत्तमम् ॥ विशेषादम्लपित्तश्च मूत्रकृच्छ्रं ज्वरं भ्रमम् । निहन्ति नात्र सन्देहो भास्करस्तिमिरं यथा ।। सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, भंगरा, सफेद जीरा, काला जीरा, धनिया, कूठ, अजमोद, लोह भस्म, अभ्रक भस्म, काकड़ासिंगी, कायफल, नागरमोथा, इलायची, जायफल, जटामांसी, तेजपात, तालीसपत्र, नागकेसर, गन्धमात्रा, कचूर, मुलैठी, लौंग और लाल चन्दन १-१ भाग; सेटका चूर्ण सबके बराबर (२८ भाग) और खांड ११२ भाग ले कर प्रथम समस्त चूर्ण से चार गुने (८ गुने) दूधमें खांड मिलाकर चाशनी बनावें और फिर उसमें उपरोक्त समस्त औषधोंका चूर्ण मिलाकर १-१ तोलेके मोदक बना लें । | भारत १- १ मोदक दूध या पानी के साथ सेवन करनेसे अम्लपित्त, अरुचि, शूल, हृद्रोग, वमन, दाह, हृद्दाह, शिरशूल, अग्निमांध, हृदयशूल, पार्श्वगूल, कुक्षिशूल, वस्तिशूल और गुदपीड़ा का नाश होता तथा बलवृद्धि होती है । [ सकारादि यह मोदक उत्तम पौष्टिक और विशेषतः अम्लपित्त, मूत्रकृच्छ्र, ज्वर और भ्रमको नाश करने वाला है । यह इन रोगों को इस प्रकार नष्ट कर देता है जिस प्रकार सूर्य अंधकार को इसमें तनिक भी सन्देह नहीं । (८३०४) सौभाग्यशुण्ठय वलेहः (मध्यम) ( यो त । त. ७५; यो. र. | सूतिका रोगा. ; वृ. यो त । त. १४२ ) नागरस्य पलान्यष्टौ घृतस्य च चतुष्पलम् । क्षीराढकेन संयुक्तं खण्डस्यार्धतुलां पचेत् ॥ शाहाजीरकव्योषत्रि सुगन्धिजवानिका । कारवी मिशिचव्यानि मुस्तानां च पलं पलम् ॥ शुद्धाभ्रका संयोज्यं त्रिपलं च पृथक्पृथक् । स्वर्ण तारं ततो योज्यं यथा चाग्निबलं भवेत् ।। लेहीभूतमिदं सिद्धं घृतभाण्डे निधापयेत् । तथाविलं खादेत्सूतिका तु विशेषतः ॥ बल्यं वर्ण्य तथा पृष्टं वलीपलित नाशनम् वयसः स्थापनं हृद्यं मन्दाग्नेर्दीपनं परम् ॥ आमवातप्रशमनं सौभाग्यकरमुत्तमम् । मक्कलशूलशमनं सूतिका रोगनाशनम् ॥ ४० तोले सोंठ चूर्णको ४० तोले' घीमें भूनें और फिर उसे ८ सेर दूधमें मिलाकर उसीमें ३ सेर १० तोले खांड मिलाकर पकायें । जब पाक तैयार हो जाय तो उसमें निम्नलिखित चीजे का चूर्ण मिला दें - रत्नाकरः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ यो. र. ; यो त में घृत २० पल है। ( जो अधिक प्रतीत होता है ) तथा भस्मांका अभाव है। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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