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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः - - (८२९९) सौभाग्यवटी (१) (लघु) पसीने आते हों या घोर निद्रामें पड़ा हो तथा समस्त इन्द्रियां निष्क्रिय हो गई हों और रोगी ( सौभाग्यचिन्तामणिरसः) शूल, श्वास, कफ, कास, मूर्छ, तृषा और अरुचि(र. चं. ; रसे. सा. सं. ! ज्वरा., भै. र. ; रे. रा.. से पीड़ित हो तो इस रसके देनेसे यह समस्त सु.; धन्व. 1 ज्वरा.) उपद्रव नष्ट हो कर रोगी मृत्युके मुखमेंसे निकल सौभाग्यामृतजीरपश्चलवणव्योषाभयाक्षामला'. आता है। निश्चन्द्राभ्रक शुद्ध गन्धक (८३००) सौभाग्यवटी (२) (वृहद्) रसानेकीकृतान्भावयेत् । __ (र. रा. सु. । ज्वरा.) निगुण्डीयुगभृङ्गराजकषापामार्गपत्रोल सत्प्रत्येक सौभाग्यं विषहिङ्गु वहिस्वरसेन सिद्धवटिका नन्ति त्रिदोषोदयम् । त्रिफलाव्योषं च जीरद्वयम् । येपां शीतमतीव देहमखिलं स्वेदद्रयाद्रीकृतं एलाकुष्ठलवङ्गगन्धकरसान् निद्रा घोरतरा समस्त करणव्यामोहमूढं मनः । जातिफलं चाभ्रकम् ।। शूलं श्वासबलाशकाससहितं मूरुिचिं तड द्वौ क्षारौ चायसं मुस्तं कट्फलं लवणत्रयम् । ज्वरं तेषां वै परिहत्य । एतानि समभागानि श्लक्ष्णं चूर्ण तु कारयेत् ।। जीवितमसौ गृह्णाति मृत्योर्मुखात् ॥ | अपामार्गस्य निर्गुण्ड्या भृङ्गराजस्य च द्रवैः। आर्द्रकस्य रसेनापि नागवल्ली रसेन च । सुहागेकी खील, शुद्ध बछनाग, जीरा, पांचों भावयेद्भावना सप्त लोहदण्डेन मर्दयेत् । नमक, सांठ, मिर्च, पीपल, हरी, बहेड़ा, आमला', माषयानुमानेन वटिकां कारयेद्बुधः ॥ अभ्रक भस्म, शुद्ध गन्धक और शुद्ध पारद आर्टकस्य रसेनापि भक्षयेत्यातरेव हि । समान भाग ले कर प्रथम पारे, गन्धककी कजली ज्वरं चाविधं हन्ति सशीतं सन्निपातकम् ।। बना और फिर उसमें अन्य औषधेका चूर्ण मिलाकर दोनों प्रकारको निर्गुण्डी ( संभालू ) के सुहागेकी खील, शुद्ध बछनाग, हींग, चीता, पत्तोंके रस, भंगरेके पत्तोंके रस बासापत्रके रस हर, बहेड़ा, आमला, सांठ, मिर्च, पीपल, सफेद और अपामार्गके पत्तों के रसकी १-१ भावना दे जीरा, काला जीरा, इलायची, कूठ, लौंग, शुद्ध कर ४-४ रत्तोकी) गोलियां बना लें। गन्धक, शुद्ध पारद, जायफल, अभ्रक भस्म, जवा खार, सज्जीखार, लोह भस्म, नागरमोथा, कायफल, - इसके सेवनसे सन्निपातका नाश होता है। सेंधानमक, काला नमक और विड नमक समान यदि रोगीका शरीर अ यन्त शीतल हो गया हो। भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें १ पाठान्तरके अनुसार 'चीता'। और फिर उसमें अन्य औषधांका चूर्ण मिला कर, ५० For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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