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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - कषायप्रकरणम् ] पचलो भानः (७२७४) श्वदंष्ट्रादिकायः सफेद तुलसीकी जड़ और सोंठका काथ ( भै. र. । अश्मर्य.) पीनेसे अजीर्ण शीघ्र ही नष्ट हो जाती है । पदंष्ट्ररण्डपत्राणि नागरं वरुणत्वचम् । (७२७८) श्वेतपुनर्नवामूलयोगः (१) एतत्क्वाथवरं प्रातः पिबेदश्मरिभेदनम् ॥ (ग. नि. । विषा. ३) गोखरु, अरण्डके पत्ते, सोंठ और बरनेकी यः पिपति पुष्यदिवसे जलपिष्टं सितपुनर्नयाछाल समान भाग ले कर क्वाथ बनावें । मूलम् । इसे प्रातः काल सेवन करनेसे अश्मरि नष्ट | तत्सभिधौ न वर्ष वृश्चिकभुजगाः प्रसर्पन्ति ॥ होती है। ___ जो व्यक्ति पुष्य नक्षत्रमें सफेद पुनर्नवाकी (७२७५) श्वासहरो दशको महाकषायः जड़को पानीमें पीस कर पीता है उसे १ वर्ष तक (च. सं. । सू. अ. ४) सर्प और बिच्छूके काटनेका भय नहीं रहता। शटी पुष्करमूलाम्लवेतसैलाहिड्वगुरु- (७२७९) श्वेतपुनर्नवाभूलयोगः (२) मुरसातामलकीजीवन्ती चण्डा इति दशेमानि (रा. मा. । उदरा.) श्वासहराणि भवन्ति। मूलं समं तन्दुलभावनेन कचूर, पोखरमूल, अम्लवेत, इलायची, हींग, प्रपेषितं श्वेतपुनर्नवायाः। अगर, तुलसी, भुई आमला, जीवन्ती और चण्डा पीतं भवेत्प्लीहविनाशहेतु (चोरक) ये दश चीजें श्वास नाशक हैं। पागजठा छिन्नरुहा जटा वा ॥ (७२७६) श्वेतचन्दनादियोगः सफेद पुनर्नवाकी जड़को चावलोंके पानीमें (यो. र. । मसूरिका.) पीस कर पीनेसे अथवा पाठाकी या गिलोयकी श्वेतचन्दनकल्काढयं हिलमोचाभवं द्रवम् । जड़को पीस कर पीनेसे प्लीहा-वृद्धि नष्ट पिबेन्ममूरिकारम्भे नैम्बं वा केवलं रसमू॥ होती है। मसूरिकाके प्रारम्भमें हुलहुलके रसमें सफेद (७२८०) श्वेतवर्षाभ्वादिकाथ: चन्दनका कल्क मिला कर देना या केवल नोमका ( भा. प्र. म. खं. २ । विद्रध्य.) रस पिलाना चाहिये। । श्वेतवर्षाभुवो मूलं मूलं वा वरुणस्य च । (७२७५) श्वेतपर्णासमूलयोगः | जलेन क्वथितं पीतमन्तर्विद्रधिहत्परम् ॥ (वै. म. र. । पट. ६) सफेद पुनर्नवा ( बिसखपरा ) की या बरमेको श्वेतपर्णासमूलेन सविश्वेन शृतं जलम् । जड़का क्वाथ पीनेसे अन्तर्विदधि नष्ट हो अजीर्ण शमयेत्तूर्ण कर्णः कार्यमिवार्थिनाम् ॥ जाती है। इतिशकारादिकषायप्रकरणम् For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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