SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् ] पञ्चमो भागः (८१९५) सर्वेश्वररसः (१) पांच वर्षके बालकोंको यह रस १ जौके ( र. रा. सु. ; वृ. नि. र. । ज्वरा. ) बराबर देनेसे उनका ज्वर नष्ट होता है। १ रत्तीसे ४ रत्ती तक, गुड़की शक्करके साथ देनेसे यह रस रसाद द्विगुणितो गन्धश्चतुर्भागस्तु टङ्कणम्। समस्त विषमज्वरों और सन्निपातज्वरांको नष्ट तथाष्टभागो जैपालस्त्र्यहं सम्मदयेदृढम् ॥ करता है। अजवायन और बायबिडंगके चूर्णके साथ वल्लो नवज्वरं हन्ति रसः सर्वेश्वराभिधः। ३ रत्ती यह रस देनेसे कृमि रोग नष्ट होता है । वल्लद्वयं हरीतक्या युक्तो वातध्वरं तथा ॥ ( व्यवहारिक मात्रा-१-२ रत्ती ।) द्विवल्लो मल्लखण्डेन पीतः क्षौद्रयुतं कफम् ।। (८१९६) सर्वेश्वररसः (२) गुञ्जा जीर्णज्वरं घोरं प्रतिलयितवांस्तथा ॥ ( रसे. सा. सं. ; धन्व. ; र. रा. सु. । कासा.) वल्लस्तु सूतिकारोगे पिप्पलीमधुसंयुतः । रसगन्धकयोश्चूर्णमेकीकृत्याभ्रकन्तथा । पञ्चवर्षस्य बालस्य यवमात्रो ज्वरं जयेत् ॥ हेमभिश्च समं कृत्वा मर्दयेद्यामकद्वयम् ॥ गुआभिवृदया विषमान् यावच्चातुर्थकावधि। यूपणानि लवङ्गैला टङ्कणं हेमतुल्यकम् । मल्लखण्डेन संयुक्तो हन्याद्दोषत्रयं तथा ॥ कण्टकार्या रसैर्भाव्यमेकविंशतिधारकम् ॥ यवानीकृमिशत्रुभ्यां वल्लो हन्यात्कुमीनपि । | शिबीजाकरसैः सप्तधा भावयेत्पृथक् ।। एवं सर्वगदान्हन्ति रसो भैरवभाषितः ॥ रसः सर्वेश्वरो नाम कासश्वासक्षयापहः॥ ___शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग, अनुपानं प्रयोक्तव्यं विभीतकफलत्वचम् ॥ सुहागेको खील ४ भाग और शुद्ध जमालगोटा ८ शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, अभ्रक भस्म, भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें । स्वर्ण पत्र ( या भस्म ), तथा सेठ, काली मिर्च, और फिर उसमें अन्य औषधे मिला कर सबको ३ पीपल, लौंग, छोटी इलायची और सुहागेकी खील; दिन तक खरल करें। इनका चूर्ण समान भाग ले कर प्रथम पारे गन्धकइसमेंसे ३ रत्ती रस उचित अनुपानके साथ की कजली बनावें और फिर अभ्रक तथा स्वर्ण देनेसे नवीन ज्वर नष्ट होता है। इसे वात ज्वरमें मिला कर दो पहर खरल करें । तत्पश्चात् उसमें ६ रस्ती मात्रानुसार हरेके चूर्णके साथ, कफवरमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिला कर कटेलीके रस ६ रत्तीकी मात्रासे गुड़की शक्कर और शहदके साथ या काथकी २१ भावना तथा सहंजनेके वीजोंके तथा जीर्णज्वरमें १ रत्ती उचित अनुपानके साथ क्वाथ और अदरकके रसको ७-७ भावना दे कर देना चाहिये । जणिज्वरमे रोगीको यथाशक्ति (३-३ रत्तीकी) गोलियां बना लें। लंघन भी कराना चाहिये । सूतिकारोगमें ३ । इनके सेवनसे कास, श्वास और क्षयका नाश रत्ती यह रस पीपलके चूर्ण और शहद के साथ होता है । देना चाहिये। अनुणन ----यहे ड़े के फलका काथ । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy