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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] पञ्चमो मागः - - सबसे दो गुना ले कर सबको एकत्र मिला कर कूठ, नागरमोथा, साया, बच, चव्य, तेजपात और अच्छी तरह खरल करें। रास्ना; इनका चूर्ण १०-११ तोला, स्वर्णमाक्षिकइसे भोजनके आदि, मध्य और अन्तमें सेवन भस्म १। तोला, ताम्र-भस्म १। तोला, शुद्ध पारद करना चाहिये। ५ तोले, शुद्ध गन्धक ५ तोले और अभ्रक भस्म अनुपान-~-शुश्क पट्टशाक (पटुवाशाक) का १० तोले ले कर प्रथम पारे गन्धककी कञ्जली चूर्ण, जल, अथवा पकाते पकाते आधा रहा हुवा बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण गोदुग्ध । मिला कर सबको अच्छी तरह खरल करें । तदन न्तर उसमें सबसे दो गुनी लोह-भस्म मिला कर इसके सेवनसे हर प्रकारके शूल, प्लीहा, | पुनः खरल करें। गुल्म, उदररोग, अग्निमांद्य, अरुचि, पांच प्रकारको कास, उरुस्तम्भ और आमवातका नाश इसके सेवनसे शरीर रोगरहित हो जाता है । होता है। (८१९४) सर्वेश्वरपर्पटीरसः (८१९३) सर्वश्वरचूर्णम् (२) ( र. र. स. । उ. अ. १८) (र. र. । रसायना.) रसो रसलोहानि कार्षिकाणि पृथक् पृथक् । चित्रकं माणकश्चैव शूरणं घण्टकर्णकम् । तेषु लोहानि सर्वाणि पाषाणाः कठिनास्तथा।। ग्रन्थिकं त्रिफलाव्योष कट्फलं सपुननेवम् ॥ घनसस्वं च तत्सर्व भस्मीकृत्य प्रयोजयेत् । दण्डोत्पलं वृश्चिकाली रुदन्ती काकमाचिका । रत्नानि वल्लतुल्यानि भस्मीकृत्य च सर्वशः । सूर्यावर्तत्रिदृदन्ती क्रिमिघ्नं कुष्ठमुस्तकम् ॥ एभिश्चतुर्गुणः मूतो गन्धस्तस्माञ्चतुर्गुणः । शतपुष्पा वचा चव्यं पत्रं रास्ना च तोलकम्। कृत्वा कज्जलिकां ताभ्यां क्षिपेल्लोहस्य भाजने। माक्षिकाणाश्च ताम्राणां पलं गन्धकस्तयोः॥ प्रद्राव्य बदराङ्गारै निक्षिपेत्तदनन्तरम् । अभ्रक द्विपलं ग्राह्य पात्रे कृत्वा दृढोपमे । रसोपरसलोहानां रत्नानामपि सर्वशः॥ सर्वमेकत्र सम्म द्विगुणं मृतमायसम् ॥ चूर्ण भस्म च निक्षिप्य काष्ठेनाऽऽलोडय चूर्ण सर्वेश्वरो नाम सर्वामयनिवईणम् ॥ मेलयेत् । चीतामूल, मानकन्द, सूरण ( जिमीकन्द ), । ततश्च षोडशांशेन मिश्रयित्वाऽरुणं विषम ॥ घण्टकर्ण, पीपलामूल, हरं, बहेड़ा, आमला, सांठ, गोमयोपरि निक्षिप्ते निक्षिपेत्कदलीदले । मिर्च, पीपल, कायफल, पुनर्नवामूल, दण्डोत्पल, पत्रेणान्येन रम्भायाः समाच्छाद्य प्रयत्नतः ॥ वृश्चिकाली (बर्हण्टा), रुदन्ती (रुद्रवन्ती), मकोय, कराभ्यां चिपटोकृत्य क्षिपेदुपरि गोमयम् । सूर्यावर्त (हुल हुल), निसोत, दन्तीमूल, बायबिडंग, | ततः शीतं समाहृत्य चूर्णयित्वा च पर्पटीम् ॥ ४३ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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