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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः ३१३ यदि इसे खानेके पश्चात् अधिक सन्ताप हो । इनमेंसे नित्य प्रति प्रातःकाल १-१ गोली तो शीतल क्रिया करनी चाहिये (नाभि पर कांस्य | पानीके साथ खानेसे फिरङ्ग रोग (आतशक) का पात्र रख कर उसमें शीतल जल छोड़ना, चन्दनका | नाश होता है। लेप करना, हवा करनी, शिर पर बरफ रखना ___ इसके सेवन कालमें खटाई और नमकसे परआदि ।) हेज़ करना चाहिये। पथ्य-शालि चावल, दही, खांड अथवा दोष और ऋतुके अनुसार अन्य उचित पथ्य दें। | (इस योगमें पारदके स्थानमें शुद्ध रस कपूर डालना चाहिये । परन्तु उपरोक्त परिमाणके सन्निपातोन्मूलनरसः अनुसार एक मात्रामें ४ रत्तीके लगभग रसकपूर (सन्निपाततृलानलरसः) आ जायगा जो बहुत अधिक ( भयानक ) है । अतः यह योग किसी योग्य चिकित्सक के परामर्शसे (रे. का. धे. । ज्वरा. ; रसे. चि. म. । अ. ९; मात्रा आदिका निर्णय करके सेवन करना र. रा. सु. ; र. च. । ज्वरा.) चाहिये।) ___ " वीरभद्राख्यो रसः" प्र. सं. ७०९२ देखिये । उसमें उपदानोंकी मात्रा भिन्न भिन्न है (८१४८) सप्तामृतरसः और इसमें सब पदार्थ समान भाग हैं। ( मै. र. ; र. र. । मुखरोगा.) (८१४७) सप्तशालिवटी मृतमूताभ्रक तुल्यं मृतलौह शिलाजतु । (भा. प्र. म. खं. २ ; धन्व. । उपदंशा.) गुग्गुलुश्च शिला ताप्यं समांशं मधुना लिहेत् ॥ पारदष्टङ्कमानः स्यात्खदिरष्टङ्कसम्मितः । अर्धगुञ्जप्रमाणेन मुखरोगं विनाशयेत् ॥ आकारकरभश्चापि ग्राह्यष्टकद्वयोन्मितः ॥ पारद-भस्म, अभ्रक भस्म, लोह भस्म, शुद्ध टङ्कत्रयोन्मितं क्षौद्रं खल्वे सर्व विनिक्षिपेत् । । शिलाजीत, शुद्ध गूगल, शुद्ध मनसिल और स्वर्ण सम्म तस्य सर्वस्य कुर्यात्सप्तवटीभिषक् ॥ । माक्षिक-भस्म समान भाग ले कर प्रथम शिलास रोगी भक्षयेत्पातरेकैकामम्बुना वटीम्। जीत और गूगलको शहदमें खरल करें और फिर वर्जयेदम्ललवणं फिरणस्तस्य नश्यति ॥ उसमें अन्य औषयें मिलाकर अच्छी तरह करें। पारद १ टंक (३॥। माशे), कत्था १ टंक, मात्रा-आधी रत्ती। अकरकरेका चूर्ण २ टंक और शहद ३ टंक ले कर सबको एकत्र मिलाकर खरल करें और सबकी ___ इसके सेवनसे (मुखपाकादि) मुख-रोग नष्ट सात गोलियां बना लें। होते हैं। ४० For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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