________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रसमकरणम् ।
पञ्चमो भाग:
३०७
(८१३५) सन्निपातभैरवो रसः (२). रसतुल्यं प्रदातव्यं दत्त्वा तोयं चतुर्गुणम् । (र. रा. सु. ; भै. र. । ज्वरा.)
| शिष्टैकगुणतोयेन भावनाविधिरिष्यते ॥ पारदं गन्धकं तालं वत्सनाभं त्रिभिः समम् ।
भावनायां भावनायां शोषणं मुहुरिष्यते । दारुमूषञ्च गरलं सर्वश्च समहिङ्गलम् ॥
ततच वटिकां कृत्वा भैरवाय बलिं ददेत् ।। सर्षपाभाश्च वटिकां कारयेत् कुशलो भिषक् ।
! रसोऽयं श्रीसन्निपातभैरवो ज्वरनाशनः । सन्निपाते क्टीमेकामाद्रावैः प्रदापयेत ॥ सर्वोपद्रवसंयुक्तं ज्वरं इन्ति न संशयः ॥ रसो महाप्रभावोऽयं सन्निपातस्य भैरवः ॥ सन्निपातज्वरं हन्ति जीर्णश्च विषमं तथा ।
ऐकाहिकं द्वयाहिकञ्च चातुर्थकमपि ध्रुवम् ।। शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक और शुद्ध हरताल १-१ भाग, शुद्ध बछनाग ३ भाग; संखिया ३
ज्वरश्च जलदोषोत्थं सर्वदोषसमाकुलम् । भाग, कृष्ण सर्पका विष ३ भाग और शुद्ध हिंगुल भैरवस्य प्रसादन जगदानन्दकन्थडो॥ १२ भाग ले कर सबको एकत्र मिलाकर पानीके शुद्र पारद, शुद्ध बछनाग, शुद्ध गन्धक साथ खरल करके सरसेकेि समान गोलियां शुद्ध हरताल, हर्र, बहेड़ा, आमला, शुद्ध जमाल. बना लें।
गोटा, निसोत, स्वर्ण-भस्म, तान-भस्म, सीसाइनमेंसे १-१ गोली अदरकके रसके साथ भरम, अन्नक-भस्म, लाह-भस्म, आकका दूध, देनेसे सन्निपात ज्वर नष्ट होता है । सन्निपात
लांगली (कलियारी) की जड़ और स्वर्णमाक्षिकज्वरके लिये यह रस महा प्रभावशाली है।
| भस्म समान भाग ले कर सबको एकत्र मिलाकर
खरल करें। तदनन्तर आककी जड़, अतीस, गोरख(८१३६) सन्निपातभैरवो रसः (३) । मुण्डो, सूरजमुखी, काला जीरा, काकजंघा, ___ (भै. र. ; र. रा. सु. । ज्वरा.) अरलुकी छाल, कूठ, सोंठ, मिर्च, पीपल, कण्टाई, रसं विषं गन्धकश्च हरितालं फलत्रयम् ।
सूर्यमणि, चन्दन, संभालुको जड़, धतूरा, दन्ती
मूल और पीपल; ये अठारह ओषधियां समान भाग जयपालं त्रिकृत्स्वर्ण ताम्रसीसाभ्रलौहकम् ॥
ले कर सबको एकत्र कूट लें और फिर यह चूर्ण अक्षीरं लागली च स्वर्णमाक्षिकमेव च ।
उपरोक्त पारदादिके मिश्रणके बराबर ले कर आठ समं कृत्वा रसेनैषां त्रिंशद्वारश्च मर्दयेत् ॥
गुने पानीमें पकावें और चौथा भाग शेष रहने पर अर्कतालम्बुषा च सूर्यकान्तश्च कारवी । छान लें । तत्पश्चात् उपरोक्त पारदादिके मिश्रणमें काकजङ्घा शोणकश्च कुष्ठं व्योपं विकङ्कतम् ॥ यह काथ मिला कर अच्छी तरह खरल करें और सूर्यमणिश्चन्द्रकान्तो निर्गुण्डीशजटापि च। धूपमें सुखा लें । इसी प्रकार इन अठारह ओषधिधुस्तूरं दन्तो पिप्पल्यो दशाष्टाङ्गमिदं शुभम् ॥ योंके क्याथको ३० भावना दें। हर बार नवीन
For Private And Personal Use Only