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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८८ भारत-भैषज्य-रत्नाकर [ सकारादि - - - - करने से कण्डू ( खुजली) और कुष्टका नाश मूसलीके बारीक चूर्णको भैसके मक्खनमें | होता है। मिलाकर किसी पात्रमें बन्द करके अनाजके ढेरमें | (८०७१) स्नुकलेपः दबा दें और ७ दिन पश्चात् निकाल लें। (व. से. । कुष्ठा.) इसका लेप करने से लिंग १ पहरमें ही स्नुगर्कजातीपूतीकमुवर्णहरिपल्लवाः । अवश्य बढ़ जाता है। | मूत्रपिष्टाः प्रलेपेन श्वित्रदद्वणच्छिदः ।। ___स्नुही ( सेण्ड ), आक, चमेली, करन और धतूरा इनके हरे पत्ते समान भाग ले कर सबको लिंगको स्वच्छ करके बार बार गायके गोबर गोमूत्रमें पीसकर लेप करनेसे श्वित्र कुष्ट, दाद का लेप करें और शीतल जलसे धोते रहें । इससे और व्रणका नाश होता है। लिंग इच्छानुसार बढ़ जाता है। (८०७२) स्नुहीक्षीरलेपः (वृ. नि. रे. । अर्शो.) | स्नुहीक्षीरनिशालेपस्तथा गोमूत्र कल्कितः। अनारकी छालके बारीक चूर्णको सरसोंके योजितो गोमवक्षीरवह्निमूलावचूर्णितम् ॥ तेलमें मिलाकर लेप करनेसे लिंग, कर्ण और पिस्तदेव तेनैव भुनानो गुदजाकरान ॥ स्तनोंकी वृद्धि होती है। थूहरका दूध और हल्दीका चूर्ण समान भाग | ले कर दानोंको एकत्र मिला कर गोमूत्रके साथ पीस कर लेप करने तथा गायके दूधमें चित्रकगोरोचन, अभ्रकका चूर्ण और कस्तूरी समान | | मूलका चूर्ण मिला कर पीने और उसीके साथ पथ्य भाग लेकर सबको शहदके साथ पीसकर लेप | भोजन करनेसे अर्शका नाश होता है। करनेसे लिंग मूसलके समान स्थूल हो जाता है। (८०७३) स्नुह्यकोदिलेपः (व. से. । क्षुद्र.) (८०७०) स्थौणेयकादिलेपः | स्नुह्यदुग्धधत्तरपत्रं मूत्रविमिश्रितम् । (ग. नि. ; वृ. मा. । कुष्टा.) | लेपनं तैलसंयुक्तं हितं काशिरोवणे ॥ स्थौणेयकनिशाः स्वल्पतालाः प्रलेपतः। स्नुही (सेण्ड) का दूध, आकका दूध और धत्तूररसपिष्टाश्च कण्डूकुष्ठविनाशनाः ॥ धतूरेके पत्ते १-१ भाग ले कर सबको एकत्र स्थौणेयक (थुनेर), हल्दी, दूर्वा (दूब घास) मिला कर गोमूत्र के साथ बारीक पीस लें । इसे १-१ भाग और ज़रा सी हरताल ले कर सबको तेलमें मिला . प करनेसे कण्डू (खाज) और एकत्र मिलाकर धतूरेके पत्तोंके रसमें घोट कर लेप शिरके व्रण नष्ट होते हैं । xxx For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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