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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८० सरसोको निकाल लें 1 www. kobatirth.org भारत - भैषज्य -- तदनन्तर उसके ठण्डा हो जाने पर उसमें से इसका लेप करने से विचर्चिका ( खुजली ) अत्यन्त शीघ्र नष्ट हो जाती है । (८०३३) सर्षपादिलेप: (१) शा. सं. । खं. ३ अ. (बृ. मा. । गलगण्डा. ११ ; ग. नि. । ग्रन्ध्याथ. ; यो. र. । गण्डमाला. ) सर्वपाः शिशुबीजानि शणबीजातसी यवान् । मूलकस्य च बीजानि तक्रेणा लेन पेषयेत् ॥ गण्डानि ग्रन्थयश्चैव गण्डमालाः समुत्थिताः । प्रलेपात्तेन शाम्यन्ति विलयं यान्ति वाऽचिरात् ।। सरसों, संहजनेके बीज, सनके बीज, अलसी, जौ और मूलीके बीज समान भाग ले कर सबको एकत्र मिला कर खट्टे महेमें पीस कर लेप करने से गण्ड और गण्डमालाकी ग्रन्थियां शीघ्र ही नष्ट हो जाती हैं । (८०३४) सर्वपादिलेप: (२) ( वृ. मा. । गलगण्डा. शा. सं । खं. ३ ; अ. ११ ; यो. र. । गण्डमाला . ) सर्वारिष्टपत्राणि दन्त्या भल्लातकैः सह । छागमूत्रेण सम्पिष्टमपचीघ्नं प्रलेपनम् ॥ सरसों, नीमके पत्ते, दन्तीमूल और भिलावा समान भाग ले कर सबको बकरेके मूत्रमें पीसकर लेप करनेसे अपची ( गण्डमाला भेद ) का नाश होता है । - रत्नाकरः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ अकारादि (८०३५) सवर्णकर्त्ता लिप: ( यो त । त. ६२ ) कुवो वल्गुजवीजाद्धरिताल चतुर्थ सम्मिश्रः । मूत्रेण गवां पिष्टः सवर्णकरणः परः श्वित्रे ॥ बाबचीके बीज ४ भाग और हरताल १ भाग ले कर दोनोंका बारीक चूर्ण करके गोमूत्र में पीस कर लेप करनेसे श्वेत कुष्ठका रंग स्वभाविक त्वचा के समान हो जाता है । (८०३६) सहस्रौतसर्पिलेपः ( वृ. नि. र. | दाह. ) सहस्रधौतेन घृतेन दिग्धदेहस्य दाहकृशतां विभर्तिः । अन्याङ्गनासङ्गमसादरस्य स्वीयेषु दारेषु यथाभिलाषः हज़ार बार धोये हुवे घृतका लेप (मर्दन) करनेसे दाहका नाश होता है । For Private And Personal Use Only (८०३७) सारिवादिलेप: (१) । ( व. से. । बालरोगा. ) सारिवोत्पलक डारभद्रश्रीमुस्तचन्दनैः पौण्डरीकमञ्जिष्ठा यष्टीमधुकसर्षपैः ॥ कुमाराणां प्रशस्तोऽयं लेपो विसर्पनाशनः ॥ सारिवा, नीलोत्पल, कहार ( कमलभेद ), सफ़ेद चन्दन, नागरमोथा, लाल चन्दन, पुण्डरिया, मजीठ, मुलैठी और सरसों समान भाग ले कर सबको एकत्र मिला कर पानीके साथ पीस कर लेप करनेसे बच्चों का विसर्प रोग नष्ट हो जाता है ।
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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