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तेसपकरणम् ]
पनमो भागः (८००६) सैन्धवाचं तैलप (८) पकावें । जब पानी जल जाय तो तेलको
छान लें। ( भै. र. । आमवाता.)
इस तेलकी मालिशसे समस्त वातज रोग, सैन्धवं देवकाष्ठश्च वचा शुष्ठी च कटफलम्। और विशेषतः आमवातका नाश होता है । शताहा मुस्तकं चव्यं मेदे मलहरं त्रित् ।। | इस तेलसे कटि जानु, उरु और सन्धिगत हिज्जलस्य त्वचं बालं चित्रकं ब्रह्मयष्टिका।
वायु, हृच्छूल, पार्वशूल और सर्व शरीरगत शूलका ऋटीविडमधुकं रेणुकातिविषा रुबु ॥ नाश होता है। इसके अतिरिक्त यह वातकफज अम्बष्ठा नीलिनी दन्तीमूलं मरिचमेव च ।।
रोगोंमें तथा वाह्यायाम, अन्त्रवृद्धि, भगन्दर और अजमोदा पिप्पलीच कुठं रास्नाच ग्रन्थिकम् ॥ नाडीत्रणमें भी उपयोगी है। एषां कर्षमितैः कल्कैः शनैर्पद्वग्निना पचेत् । । प्रस्थश्च कटुतैलस्य मूर्छितस्य यथाविधि ॥ (८००७) सोमराजीतैलम् (१) एततैलबरं श्रेष्ठमभ्यवाद सर्ववाननुन् ।
(भै. र. ; व. से. ; धन्व. ; च. द. । कुष्ठा.) विशेषेणामवातेषु कटीजानसन्धिषु ॥ हृत्पार्धसर्वगात्रेषु शूलचैव विनाशयेत् । । सोमराजी हरिद्रे द्वे सर्षपाः कुष्ठमेव च । वातश्रेष्मणि वाद्यायामात्रबदौ भगन्दरे ॥ ! करङ्गडगजाबोज पत्राण्यारग्वधस्य च ॥ शस्तं नाहीव्रणान् सर्वान् नाशयत्यय देहिनाम् । विपचेत्सापपं तैलं नाडीदुष्टवणापहम् । अन्यांश्च विविधान् रोगान् वृक्षमिन्द्राशनिर्यया।। अनेनाशु प्रशाम्यन्ति कुष्ठान्यष्टादशैव तु ॥ सैन्धवादमिदं तैलं सर्वामयनिष्पदनम् ॥ नीलिका पिडका व्यङ्गो गम्भीरं वातशोणितम्।
कण्डुकच्छुपशमनं दद्रुपामानिवारणम् ।। कल्क-सेंधा नमक, देवदारु, वच, सांठ, कायफल, सोया, नागरमोथा, चन्य, मेदा, महा
कल्क-बाबची, हल्दी, दारुहल्दी, सरसा, मेदा, जमालगोटेकी जड़, निसोत, हिज्जल कूठ, कर अबीज, पंवाड़के बीज और अमलतासके वृक्षको छाल, सुगन्धबाला, चीता, भरंगी, कचर, पत्ते १०-११ तोला ले कर सबको एकत्र वायबिडंग, मुलैठी, रेणुका, अतीस, अरण्डमूल,
पीस लें। पाठा, नीलकी जड़, दन्तीमूल, काली मिर्च, अज- १ सेर सरसेांके तेल में यह कल्क और मोद, पीपल, कूर, राना और पोपलामूल; इनका ४ सेर पानी मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब चूर्ण १३-१। तोला ।
| पानी जल जाय तो तेलको छान लें । २ सेर सरसोंके यथाविधि मूर्छित तैलमें यह इसके लगानेसे दुष्ट नाडीव्रण, १८ प्रकारके कल्क और ८ सेर पानी मिलाकर मन्दाग्नि पर | कुष्ठ, नीलिका, पिडिकायें, व्यंग, गम्भीर वातरक्त,
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