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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तैलमकरणम् ] २ सेर तिलके तेल में यह काथ, कल्क और ८ सेर दूध मिला कर मन्दाग्नि पर पकायें । जब पानी जल जाय तो तेलको छान लें । www. kobatirth.org यह तेल राजाओं, स्त्रियों, बच्चों और वृद्धों के लिये उपयोगी है । इसके सेवनसे वातव्याधि नष्ट होती है। सुगन्धितैलम् (२) (महा) 46 प्र. सं. ५३०६ और ५३०७ महा सुगन्धि तैलम् " देखिये । ले पञ्चमो भागः (७९९६) सुमुखाद्यं तैलम् (ग. नि. । अर्शो. ४ ) पक्वं सुमुखगण्डीर बाकुचीव्योषधान्यकैः । चव्यक्षारयवक्षारवद्विक्षारैस्तु साधितम् ॥ घ्राणजानि हरेतैलमशसि क्षणाधुत्रम् ॥ राईका पंचांग, सेहुण्ड ( थूहरका डंडा ), बावची, सांठ, मिर्च, पीपल, धनिया, चवका क्षार, जवाखार और चित्रकका क्षार, इनका चूर्ण समान भाग मिलित २० तोले ले कर २ सेर तेल में मिलावें और उसमें ८ सेर पानी डाल कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाय तो तेलको छान I (७९९७) सुरसादितैलम् (ग.नि. । नासा. ४ ) सुरसन्योषकुष्ठैस्तु लाक्षाकटफल योजितैः । सविडङ्गै पचेत्तैलं सार्षपं पूतिनाशनम् ॥ इस तेल की मालिशसे नाक के मस्से नष्ट होते हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६७ कल्क -तुलसी, सोंठ, मिर्च, पीपल, कूठ, लाख, कायफल और बायबिडंग समान भाग मिश्रित २० तोले ले कर पानी के साथ पीस लें 1 क्वाथ - उपरोक्त ओषधियां समान भाग मिलित ४ सेर ले कर सबको एकत्र कूट कर ३२ सेर पानी में पकावें और जब ८ सेर पानी रह जाय तो छान 1 २ सेर सरसों तेल में यह काथ और कल्क मिला कर मन्दाग्नि पर पकायें । जब पानी जल जाय तो तेलको छान लें। इसकी नस्य लेनेसे पूतिनासा रोग नष्ट होता है। (७९९८) सततैलम् ( र. र. स. । उ. अ. २१ ) रसगन्धशिलातालं सर्व कुर्यात्समांशकम् । चूर्णयित्वा ततः श्लक्ष्णमारनालेन मर्दयेत् ॥ पयित्वा तु कल्केन सूक्ष्मवस्त्रं ततः परम् । तैलाक्तां कारये तिमूर्ध्वभागे प्रदीपयेत् ॥ वर्त्यधःस्थापिते पात्रे तैलं पतति शोभनम् । लेपयेत्तेन गात्राणि भक्षयेदातुरस्तथा || नाशयेत्सूततैलं तद्वातरोगाननेकधा । बाहुकम्पं शिरःकम्पं जङ्घाकं ततः परम् ॥ एका च तथा वातं हन्ति रोगाननेकधा । रोगशान्त्ये सदा देयं ततैलमिदं शुभम् ॥ शुद्ध पारद, गन्धक, हरताल और मनसिल, समान-भाग मिला कर कज्जली बनावें और फिर उसे कांजी में खरल करके बारीक कपड़े पर लेप कर दें। जब वह सूख जाय तो बत्ती बनाकर For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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