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तैलमकरणम् ]
२ सेर तिलके तेल में यह काथ, कल्क और ८ सेर दूध मिला कर मन्दाग्नि पर पकायें । जब पानी जल जाय तो तेलको छान लें ।
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यह तेल राजाओं, स्त्रियों, बच्चों और वृद्धों के लिये उपयोगी है । इसके सेवनसे वातव्याधि नष्ट होती है।
सुगन्धितैलम् (२) (महा)
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प्र. सं. ५३०६ और ५३०७ महा सुगन्धि तैलम् " देखिये ।
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पञ्चमो भागः
(७९९६) सुमुखाद्यं तैलम् (ग. नि. । अर्शो. ४ ) पक्वं सुमुखगण्डीर बाकुचीव्योषधान्यकैः । चव्यक्षारयवक्षारवद्विक्षारैस्तु साधितम् ॥ घ्राणजानि हरेतैलमशसि क्षणाधुत्रम् ॥
राईका पंचांग, सेहुण्ड ( थूहरका डंडा ), बावची, सांठ, मिर्च, पीपल, धनिया, चवका क्षार, जवाखार और चित्रकका क्षार, इनका चूर्ण समान भाग मिलित २० तोले ले कर २ सेर तेल में मिलावें और उसमें ८ सेर पानी डाल कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाय तो तेलको
छान
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(७९९७) सुरसादितैलम्
(ग.नि. । नासा. ४ ) सुरसन्योषकुष्ठैस्तु लाक्षाकटफल योजितैः । सविडङ्गै पचेत्तैलं सार्षपं पूतिनाशनम् ॥
इस तेल की मालिशसे नाक के मस्से नष्ट होते हैं ।
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कल्क -तुलसी, सोंठ, मिर्च, पीपल, कूठ, लाख, कायफल और बायबिडंग समान भाग मिश्रित २० तोले ले कर पानी के साथ पीस लें 1
क्वाथ - उपरोक्त ओषधियां समान भाग मिलित ४ सेर ले कर सबको एकत्र कूट कर ३२ सेर पानी में पकावें और जब ८ सेर पानी रह जाय तो छान
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२ सेर सरसों तेल में यह काथ और कल्क मिला कर मन्दाग्नि पर पकायें । जब पानी जल जाय तो तेलको छान लें।
इसकी नस्य लेनेसे पूतिनासा रोग नष्ट होता है।
(७९९८) सततैलम्
( र. र. स. । उ. अ. २१ ) रसगन्धशिलातालं सर्व कुर्यात्समांशकम् । चूर्णयित्वा ततः श्लक्ष्णमारनालेन मर्दयेत् ॥ पयित्वा तु कल्केन सूक्ष्मवस्त्रं ततः परम् । तैलाक्तां कारये तिमूर्ध्वभागे प्रदीपयेत् ॥ वर्त्यधःस्थापिते पात्रे तैलं पतति शोभनम् । लेपयेत्तेन गात्राणि भक्षयेदातुरस्तथा || नाशयेत्सूततैलं तद्वातरोगाननेकधा । बाहुकम्पं शिरःकम्पं जङ्घाकं ततः परम् ॥ एका च तथा वातं हन्ति रोगाननेकधा । रोगशान्त्ये सदा देयं ततैलमिदं शुभम् ॥
शुद्ध पारद, गन्धक, हरताल और मनसिल, समान-भाग मिला कर कज्जली बनावें और फिर उसे कांजी में खरल करके बारीक कपड़े पर लेप कर दें। जब वह सूख जाय तो बत्ती बनाकर
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