________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२६२ भारत-भैषज्य-रलाकरः
[ सकारादि कर्णवाते शिरकम्पे शिरोरोगे तयार्दिते : कल्क---सारिवा, बच, गिलोय, मुलैठी, हर्र, सर्ववातकृते दोषे कफमेदः कृतेऽनिले ॥ बहेड़ा, आमला, नीलोत्पल, नीलका पंचांग, भंगरा,
६। सेर कटसरैयाको ३२ सेर पानीमें पकावें । कसीस और बकायनके फल समान भाग मिलित और ८ सेर रहने पर छान लें। तदनन्तर उसमें | २० ताले लेकर सबको एकत्र पीस लें। २ सेर तेल, ८ सेर दूध और निम्न लिखित करक | काय--४ सेर जौ को ३२ सेर पानीमें मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल पका और ८ सेर शेष रहने पर छान लें। जाय तो तेलको छानले ।
____सरसोंके २ सेर तेलमें उपरोक्त कल्क और कल्क --सफेद चन्दन, अगर, मुलैठी, कचूर, काथ मिलाकर पकावें । जब पानी जल जाय तो देवदारु, नागरमोथा, सेंधा नमक, अजमोद, तेलको छान लें। काफोली, क्षीरकाकोली, सफेद और काला जीरा,
", यह तेल कण्डू (खाज) और दारुणक (शिर कूठ, संचल ( काला नमक) सोंठ, मिर्च, पीपल, |
१ की छोटी छोटी फुसियों) को नष्ट करता है तथा रास्ता, भरंगी और गोखरु; इनका चूर्ण ११-१॥ शिरोरोगों में उपयोगी है। तोला एवं खांड ४० तोले। इस तेलको पीने तथा इसकी मालिश करने |
(७९८८) सिद्धार्थकतैलम् (१) और नस्य लेनेसे ऊर्बवात, अधोवात, पक्षाघात, (ग. नि. । परि. तैला. २) अपबाहुक, कर्णगत वायु, शिर:कम्पन, शिरोरोग
करवीरवचातुम्बहरसाअनकरअभृङ्गलाक्षाभिः । और अर्दित आदि समस्त वातज रोग एवं कफ
सारुष्करसिद्धार्थ कमूलकबीजाग्निगण्डीरैः ॥ और मेदयुक्त वायुके रोग नष्ट होते हैं ।
रजनीद्वयमधिष्ठारमधविडङ्गमाक्षीकैः । सहस्रपाकबलातैलम् सैन्धवकटुकालाम्बुपिचुमर्दास्फोटमालतीभिश्च (च. सं. । चि. अ. २९)
सर्पपतैलं कारज वा गवां मूत्रेण वै सिद्धम् । प्र. सं. ७३९८ " शतपाकबलातैलम् ” देखिये।
द्विगुणेन साधितमचिरादभ्यङ्गादन्ति कुष्ठानि ॥
अष्टादशापि सिद्धं तैलं सिद्धार्थकं नाम ॥ (७९८७) सारिवाचं तैलम्
___कल्क---करवीर (कनेर ), बच, तुम्बर (ग. नि.। परि. तैला. २; वृ. नि. र. । शिरोरोगा.) (नेपाली धनिया), रसौत, करंज (करंजुवेको छाल) सारिवोग्रामृतायष्टीत्रिफलानीलमुत्पलम् ।। भंगरा, लाख, भिलावा, सरसो, मूलीके बीज, चीता, नीलीभृङ्गारकासीसमहानिम्बफलानि च ॥ सेंड (स्नुही), हल्दी, दारुहल्दी, मजीठ, अमलकटुतैलं पचेदेभिः सार्धे यवरसेन तु । तासकी छाल, बायबिडंग, सामुद्रलवण, सेंधा फण्डूं दारुण हन्ति शिरोरोगे च शस्यते ॥ नमक, कड़वी तूंबी, नीमकी छाल, कचनारकी छाल
For Private And Personal Use Only