SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ सकारादि २ सेर घीमें उपरोक्त कल्क, काथ, तथा यह घृत श्वासको नष्ट करता है । २-२ सेर कांजी, (पानी) और दधिमस्तु (दहीका (मात्रा--१ तोला ।) पानी) मिला कर पकावें | जब जलांश शुष्क हो | __ (७९६९) सौवर्चलादिघृतम् (२) जाए तो घीको छान लें। (र. र. । शोथा.) मात्रा-६ माशे। सौवर्चल यवक्षारं यवानी पञ्चकोलकम् । यह घृत कफ वातज एवं वातज, रक्त मांस | मरिचं दाडिमं पाठा धन्याकमम्लवेतसम् ॥ तथा मेदमें स्थित श्लीपदको अवश्य नष्ट करता है। वारिबिल्वञ्च कर्भाशं क्वाथयेत्सलिलाढके। तथा अपची, गण्डमाला, अन्त्रवृद्धि, अर्बुद, ग्रहणी- तत्क्वाथेन घृतपस्थं पाच्यं घृतावशेषकम् ।। दोष, शोथ, अर्श और उदर कृमियोंको नष्ट शोधार्थीगुल्ममेहातौँ घृतं सेव्यं प्रशान्तये ॥ करता है । यह अत्यन्त अग्निवर्द्धक और क्वाथ--संचल (कोला नमक), जवाखार, हृद्य है। अजवायन, पीपल, पीपलामूल, चव, चीतामूल, नोट-पाठान्तरके अनुसार चव, चीता और | सेठ, काली मिर्च, अनारकी छाल, पाठा, धनिया, गूगलका अभाव है। अम्लबेत, सुगन्धबाला और बेलकी छाल ११-१॥ (७९६८) सौवर्चलादिघृतम् (१) तोला ले कर सबको कूट कर ८ सेर पानीमें पकावें (ग. नि. ; व. से. । हिक्काश्वासा.) और २ सेर रहने पर छान लें । इस काथमें २ सेर घी मिला कर पकावें। सौवर्चलयवक्षारकटुकाव्योपचित्रकैः ।। | जब पानी जल जाय तो घीको छान लें । वचाविडङ्गैश्च घृतं साधितं श्वासशान्तये ।। यह घृत शोथ, अर्श, गुल्म और प्रमेहको कला-संचल (काला नमक ), जवाखार, . नष्ट करता है। कुटकी, सोंठ, मिर्च, पीपल, चीतामूल, बच और (७९७०) स्थलपाकघृतम् बायबिडंग; इनका समान भाग मिश्रित चूर्ण १० तोले । (च. द. । शोथा. ३८ ; व. से. । शोथा.) क्वाथ-उपरोक्त ओषधियां २ सेर ले | स्थलपद्मपलान्यष्टौ त्र्यूषणस्य चतुपलम् । कर १६ सेर पानीमें पकावें और ४ सेर रहने | घृतप्रस्थं पचेदेभिः क्षीरं दत्वा चतुर्गुणम् ॥ पर छान लें। पञ्च कासान्हरेच्छीघ्रं शोथं चैव सुदुस्तरम् ॥ १ सेर घीमें उपरोक्त काथ और कल्क | कल्क-स्थलपन ४० तोले और त्रिकुटा मिला कर पकावें । जब पानी जल जाय तो घीको ( समान भाग मिलित सांठ, मिर्च, पीपल ) २० छान लें। | तोले ले कर सबको एकत्र पीस लें। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy