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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवलेह प्रकरणम् ] पञ्चमो भागः सुपारीपाका (७९४०) सैन्धवाद्यवलेहः (२) (वै. र. । वाजीकरणा.) ( भा. प्र. म. खं. २ । बालरोगा. ; ग. नि. । पकारादि अवलेह प्रकरणमें “ पूगखण्डः" बालरोगा. ११) तथा " पूगपाकः" एवं रकारादि रस प्रकरणमें | घृतेन सिन्धविश्वैलाहिङ्गभामरजो लिहन् । प्र. सं. ६०३९ “रतिवल्लभ-पूगपाकः" देखिये। आनाहं वातिकं शूलं हन्यात्तोयेन वा शिशुः।। __ (७९३८) सुवर्णगैरिकादिलेहः सेंधा नमक, सांठ, इलायची, हींग और भर'गी; (ग. नि. । हिक्का. १२) इनका चूर्ण समान भाग ले कर घीमें मिला कर सुवर्णगैरिफ भार्गी शालिलाना निदिग्धिका । चटानेसे या गरम पानीके साथ देनेसे बालकका हिक्कानुदेष वै लेहो घृतमाक्षिकसंयुतः ॥ अफारा और वात्ज शूल नष्ट होता है । सोनागेरु, भरंगी, शालीधानकी खील और (मात्रा-२-३ रत्ती ।) कटेली; इनका समान भाग चूर्ण ले कर सबको (७९४१) सौभाग्यशुण्ठीपाकः (१) एकत्र मिला कर घी और शहद के साथ सेवन करनेसे हिका (हिचकी) का नाश होता है। ( नागरखण्डः) (चूर्णे ६ माशे, घी १ तोला, शहद २ ( यो. र. । सूतिका. ; वृ. यो. त. । त. १४२ ; तोले । सबको मिला कर थोड़ा थोड़ा बार बार | भा. प्र. म. खं. २ । सूतिका.) चटावें ।) आज्यस्याञ्जलियुग्ममत्र पयसः प्रस्थद्वयं खण्डत (७९३९) सैन्धवाद्यवलेहः (१) । पञ्चाशत्पलमत्र चूर्णितमय प्रतिप्यते नागरम् । (व. से. । अर्शो.) प्रस्थाधं गुडवद्विपाच्य विधिना मुष्टित्रयं धान्य: सैन्धवं नागरं पाठा दाडिमस्य रस गुडम् । सतकलवणं दद्याद्वातवर्होनुलोमनम् ॥ मिस्याः पञ्चपलं पलं कृमिरिपोः साजाजिजी रादपि ।। सेंधा नमक, सांठ और पाठा; इनका चूर्ण, व्योपाम्भोददलोरगेन्द्रसुमनः सद्राविडीनां पलं अनारका रस और गुड़ समान भाग ले कर एकत्र पक्वं नागरखण्डसज्ञकमिदं सौभाग्यदं योषिताम् मिलावें। तृछर्दिज्वरदाहशोषशमनं सश्वासकासापहं इसे लवण ( सेंधा नमक ) युक्त तक्रके प्लीहव्याधिविनाशनं कृमिहरं मन्दाग्निसन्दीसाथ सेवन करनेसे वायु और मल स्वमार्गगामी पनम् ॥ हो जाते हैं। घी १ सेर, दूध ४ सेर, खांड ३ सेर १० (मात्रा-६ माशे ।) | तोले और सेठिका चूर्ण ४० तोले ले कर प्रथम कान् For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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