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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [सकारादि जवाखार, सजीखार, सांठ, मिर्च, पीपल, हरं, । सप्ताङ्गगुग्गुलुः (२) बहेड़ा, आमला, हल्दी, रुद्राक्ष, नागरमोथा, सेंधा ( भै. र. । व्रणशोथा.) लवण, काला नमक, बिड नमक, तुम्बरु, पीपला प्र. सं. ६६९० " विडङ्गादिवटिकागुग्गुलुः" मूल, शुद्ध भिलावा, छोटी इलायची, चीतामूल, । देखिये। चव्य, कूठ, सोनामक्खी भस्म, पोखरमूल, बाय (७९२०)समशर्करागुग्गुलुः बिडंग, अतीस और गजपीपल; इनका चूर्ण १-१ भाग और शुद्ध गगल २६ भाग ले कर सबको ( भा. प्र. म. ख. २ । वातरक्ता.) एकत्र मिलाकर थोड़ा घी डालकर कूटें और सबके | साटासमेत एकजीव हो जाने पर (२-२ माशेकी) मुस्तकत्रुटिवचायवानिकाः । गोलियां बना लें। व्योषदीप्यकानिशाफलत्रिक अनुपान-दूध, जल, कांजी या मूंगका यूष । जीरकद्वयविडङ्गचित्रकम् ।। यह गूगल हुन्छूल, पार्श्वशल, कटिशूल, कार्षिकं मुममृणं मुयोजितं वंक्षणशूल, कुक्षिशूल, कक्षाशूल, कुष्ठ, किलास, संयुतं पुरपलैश्च पंचमिः । पाण्डु, क्षय, अपस्मार, ऊर्ववात, उन्माद, आमवात, | शर्करां पुरसमां सुपेषयेशोथ और प्रमेहको नष्ट करता है । तासपिपि विनिक्षिपेत्ततः ॥ (७९१९) सप्ताङ्गगुग्गुलुः (१) । वातरक्तमुदरं भगन्दरं ( भै. र. ; वृ. मा. । नाडीव्रणा. ; यो. त. । त. पीहयक्ष्मविषमज्वरं गरम्। ६०; वै. र. । भगा; भा. प्र. म. खं. २ । वित्रकुष्ठमखिलव्रणानयं नाडीव्रणा. ; ग. नि. । नाडीव्रणा. ६) चित्तविभ्रममदांश्च दारुणान् ॥ | गृध्रसीं च गुदजानिमन्दतां गुग्गुलुत्रिफलाध्योपैः समर्शिराज्ययोजितः । _हन्ति कोष्ठजनितं महागदम् । नाडीदुष्टत्रणशूलभगन्दरविनाशनः ॥ वज्रमिन्द्रसुकरादिवच्युतं हर, बहेड़ा, आमला, सोंठ, मिर्च और गुप्तशैलकुलमुत्तमं द्रुतम् ।। पीपल; इनका चूर्ण तथा शुद्ध गूगल समान भाग | अन्नपानपरिहारवर्जितं ले कर सबको एकत्र मिला कर थोड़ा घी डालकर ___ सर्वकालमुखदं निरत्ययम् । कूटें और एकजीव हो जाने पर (२-२ माशेकी) | सेव्यमानमिदमचिनिर्मित गोलियां बनावें। गुग्गुलोहि वटिकारसायनम् ॥ इसके सेवनसे नाड़ीत्रण, शूल और भगन्दरका चत्वारो माषकाहीने मध्यमेऽष्टौ च माषकाः । नाश होता है। श्रेष्ठा द्वादशकाःप्रोक्ताःकोष्ठं विज्ञाय पाययेत ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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