________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२१२
भारत-भैषज्य रत्नाकरः
[सकारादि
(७८६२) मूरणादियोगः (२) हन्यादीसि शूलं च गुल्मप्लीहोदरकुमीन् ।
(वै. म. र. । पटल. ५) | भुक्तं भुक्तं पचत्याशु शान्तमग्निं च दीपयेत् ।। मासमेकमननाशी सूरणं भक्षयेत्सुखम् । सेठ १ भाग, काली मिर्च २ भाग, जवाखार नकानुपानमाश्व र्शो निर्मूलनोत्सुकः ।। ४ भाग, चीतामूल ८ भाग और सूरण (जिमीकन्द)
१ मास तक अन्न बन्द करके केवल तक्रके १६ भाग ले कर चूर्ण बनावें । इसे जवाखारके साथ सूरण (जिमिकन्द ) खानेसे अर्श निर्मूल हो पानी, नीबूके रस और अद्रकके रसको १-१ जाता है।
भावना दे कर सुखा लें। (७८६३) मूरणादियोगः (३) __इसके सेवनसे अर्श, शूल, गुल्म, प्लीहा और ( हा. सं. । स्था. ३ अ. ११ ; ग. नि. कृमि रोगका नाश होता एवं अग्नि दीप्त हो कर
अों. ४ ; वृ. मा. । अर्शो.) बार बार भूख लगती है। सूरणकन्दकमर्कदलैस्तु
(मात्रा-३-४ माशे ।) वेष्टितमेव हि कर्दमलिप्तम्। भ्रष्टमतोऽनलवर्णसमानं
(७८६५) सैन्धवादिचूर्णम् (१) तं च ससैन्धवतैलबिमिश्रम् ॥
(वै. म. र. । पटल ८) भक्षति चार्शविनाशनहेतो
| सैन्धवं स्नुहिमध्यस्थं दग्धमारवहिना । तिविकारहितोऽपि नर। सलिलेन कवोष्णेन पिबेच्छ्लनिपीडितः ॥ सूरणकन्द ( जिमीकन्द ) को आकके पत्तोंमें | सेंधा नमकके चूर्णको स्नुही (सेंड) के डंडेके पेट कर ऊपरसे मिट्टीका (१ अंगुल मोटा) भीतर भर कर उस पर कपर मिट्टी करके अंगारोंकी लेप करके कण्डोंकी अग्निमें पकावें । जब ऊपरवाली अग्निमें जलावें और ठंडा हो जाने पर उसे (थूहरमेट्टी आगके समान लाल हो जाय तो ठंडा करके सेंड समेत) पीस लें। सूरणको निकाल कर पीस लें।
इसे मन्दोष्ण जलसे पीनेसे शूल नष्ट होता है। इसमें ( स्वाद योग्य ) सेंधा नमक मिलाकर (मात्रा-१-१॥ माषा । ) तिल के तेल के साथ सेवन करनेसे अर्श और वात
। (७८६६) सैन्धवादिचूर्णम् (२) विकारोंका नाश होता है। (मात्रा-६ माशेसे १ तोलो तक ।)
(वृ. मा. | बालरोगा.) (७८६४) सूरणाय चूर्णम् घृतेन सिन्धुविश्वलाहिङ्गभारिजो लिहन् ।
( ग. नि. । परि. चूर्गा. ३) आनाई वातिक शूलं जयेत्तोयेन वा शिशुः ॥ दूरणं दहनं क्षारो मरिच नागरं क्रमात । । सेंधा नमक, सांठ, इलायची, हींग और अधिकमिदं चूर्ण क्षाराम्लाकभावितम् ॥ भरंगी समान भाग ले कर चूर्ण बनावें ।
For Private And Personal Use Only