SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०९ चूर्णभकरणम् ] . पश्चमो भागः (७८५०) सुरसादियोगः (२) | भार्गीतामलकी जीवा वृक्षाम्लश्चेति चूर्णितम् । (वै. म. र. । पट. ११) हिक्कावासविबन्धाःकासहत्पार्श्वशूलनुद ॥ तुषाम्भसा तालशिफां सशुण्ठी ___ तुलसीकी जड़, चोरपुष्पी, काकड़ासिंगी, नाभी कवोष्णां प्रदिहेत् कृमिघ्राम् । | छोटी इलायची, पोखरमूल, कचूर, पीपल, दालप्रातः पिबेद्वा सुरसस्य मूलं चीनी, बिड लवण, जवाखार, सोंठ, हींग, अमरसनागरं कोष्णजलेन वापि ॥ बेत, भरंगी, भुई आमला, जीवक और तिन्तडीक तालकी जड़ और सेठको कांजीमें पीस कर समान भाग ले कर चर्ण बनावें। मन्दोषण करके नाभिपर लेप करनेसे कृमि नष्ट होते | ___ इसके सेवनसे हिचकी, श्वास, विबन्ध, अर्श, हैं । अथवा तुलसीकी जड़ और सेठको मन्दोष्ण कास और पार्श्व-शूलका नाश होता है। जलमें पीस कर प्रातःकाल पीनेसे भी कृमि नष्ट (मात्रा-१॥-२ माशे । अनुपान शहद।) हो जाते हैं। (७८५३) सुवर्गलादिचूर्णम् (७८५१) सुरसादियोगः (३) (वृ. नि. र. । अतिसारा.) ( हा. सं. । स्था. ३ अ. ५) सुवर्चलं वचा हिङ्गु हैमज्योति विषा समम् । सुरसा सुरदारु मागधी वातातीसारहृत्पोक्तं सकटुत्रयमम्भसा ।। बिडकम्पिल्लविडादन्तिनी। संचल ( काला नमक ), बच, हींग, चिरात्रिता त्रिफला रसोनकं यता, चीतामूल, अतीस, सेांठ, मिर्च और पोपल कृमिहद्वै सलिलेन सेवितम् ॥ | समान भाग ले कर चर्ण बनावें । तुलसीकी जड़, देवदारु, पीपल, बिड लवण, इसे जलके साथ सेवन करनेसे वातातिसार कमीला, बायबिडंग, दन्तीमूल, निसोत, हरी, बहेड़ा, आमला और ल्हसन समान भाग ले कर (मात्रा-१५-२ माशा ।) चूर्ण बनावें । (७८५४) सुवर्चलादियोगः (१) इसे पानीके साथ सेवन करनेसे कृमि रोग | (ग. नि. । शूला. २३ ; वृ. नि. र. । शूला.) नष्ट होता है। सुवर्चलाजीरकमम्लवेतसं (मात्रा-१॥ माशा।) समं त्रयं द्वयंशमरीचचूर्णकम् । (७८५२) सुरसाचं चूर्णम् सुपक्वपूरस्य रसेन भावितं (ग. नि.। चूर्णा. ३) __ जलेन पीतं खलु वातशूलहृत् ॥ सुरसा चोरकं शृङ्गी सूक्ष्मैला पुष्करं सठी।। काला नमक (संचल), जीरा और अम्लबेत पिप्पलीत्वबिडक्षारशुण्ठी हिज्बम्लवेतसम् ॥ १-१ भाग तथा काली मिर्चका चूर्ण २ भाग ले २७ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy