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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः (सकारादि (७७७१) सप्तच्छदादिक्वाथः (३) सप्तमुष्टिक इत्येष सनिपातज्वरं जयेत् । (व. से. । मूत्रकृच्छा .) आमवातहरः कण्ठहद्वक्त्राणां विशोधनः ॥ सप्तच्छदारवधकेतकैलाः कुलथी, जौ, बेर, मूंग, मूलीके टुकड़े, सोंठ निम्बः करमः कुटजो गुडूची। और धनिया । साध्या जले तेन पचेयवागू इनका काथ कफ, वायु, सन्निपात ज्वर सिद्धं कषायं मधुसंयुतं वा ॥ सतौनेकी छाल, अमलतास, केतकी, इला और आमवातको नष्ट तथा कण्ठ, हृदय और यची, नीमकी छाल, करञ्ज, कुटकी और गिलोय। मुखको शुद्ध करता है। इनके काथमें शहद मिलाकर सेवन करनेसे (७७७४) समङ्गादिकल्का अश्मरि-जन्य मूत्रकृच्छ नष्ट होता है। इन्ही ओषधियोंके जलसे यवागू बनाकर (हा. सं. । स्था. ३ अ. ११) खिलानेसे भी अश्मरि-जन्य मूत्रकृच्छ्रमें लाभ समझा शाल्मलीपुष्पं चन्दनं ककुभत्वचम् । होता है। नीलोत्पलमजाक्षीरं पिष्ट्वा पानमसृगदान् ।। ( यवागू बनानेके लिये समस्त ओषधियां लज्जालुकी जड़, सेंभलके फूल, लाल चन्दन, समान भाग मिलित ११ तोला । पानी २ सेर ।। अर्जुनकी छाल और नीलोत्पल समान भाग मिश्रित शेष १ सेर ।) | (१ तोला) ले कर बकरीके दूधमें पीस कर पीनेसे (७७७२) सप्तपर्णयोगः रक्तप्रदर नष्ट होता है। ( रसे. चि. म. । अ. ९) सप्तपर्णशिफाकल्कपानाद्वा लेपनात्तथा । (७७७५) समङ्गादिक्वाथः (१) मुपलीमूलपानात्त तन्तुकाख्यो विनश्यति ॥ (वृ. यो. त. । त. ६४ : यो. र. । अतिसारा.) सतौनेकी जड़का कल्क पीने तथा उसीका समझातिविषा मुस्ता विश्वहीबेरघातकी । लेप करनेसे या मूसलीको (पानीके साथ) पीस कर कुटनत्वग्दलैबिखैः क्वाथः सर्वातिसारनुत् ॥ पीनेसे नहरुवा नष्ट हो जाता है। (७७७३) सप्तमुष्टिकयूषः लज्जालुकी जड़, अतीस नागरमोथा, सोंठ, ( शा. सं. । खं. २ अ. २ ; व. से. ; यो.. सुगन्धबाला, धायके फूल, कुड़ेकी छाल और बेलके पत्ते । र. । ज्वरा. ; यो. त.। त. १८) कुलित्थयवकोलैश्च मुर्मूलकशुण्ठिकैः । इनका काथ समस्त प्रकारके अतिसारोको शुण्ठीधान्याकयुक्तैश्च यूषः श्लेष्माऽनिलापहः।। नष्ट करता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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