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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतमकरणम् ] पञ्चमो भामः १८३ (७७५३) षडङ्गघृतम् (१) इसे राजयक्ष्मामें स्रोतोंको शुद्ध करनेके लिये देना चाहिये। (वृ. मा, । अतिसारा. ; व. से. । अतिसारा. ; वृ. यो. त.। त. ६४; च. द.। (७७५५) षविन्दुघृतम् (१) ___ अतिसारा. ४) (वृ. यो. त. । त. १३२ ; वै. र. । शिरो रोगा. ; व. से. । शिरो.) वत्सकस्य च बीजानि दाव्यांश्च त्वच उत्तमाः। मधकमधकबिड सभाराजनागपत सिद्धम् । पिप्पलीशृङ्गवेरं च लाक्षा कटुकरोहिणी ॥ षड्विन्दुनस्यदानादेतच्छीर्षामयं हन्ति ।। षड्भिरेतैघृतं सिद्धं पेयामण्डावचारितम् ।। मुलैठी, महुवेकी छाल, बायबिडंग, भंगरा अतिसारं जयेच्छीघ्र त्रिदोषमपि दारुणम् ॥ । और सांठ समान भाग ले कर इनके कल्क और इन्द्रजौ, दारुहन्दीकी छाल, पीपल, सेठि, काथसे घृत सिद्ध करें। लाख और कुटकी ५-५ तोले ले कर सबको इसकी नित्य प्रति ६ बूंद नाकमें डालनेसे एकत्र पीस लें। शिर शूलादि शिरोरोग नष्ट होते हैं। ३ सेर घीमें उपरोक्त कल्क और १२ सेर (फल्कार्थ-प्रत्येक ओषधि ४ तोले । पानी मिला कर पकावें । जब पानी जल जाय तो क्वाथार्थ-प्रत्येक ओषधि ६४ तोले । पानी घीको छान लें। ३२ सेर । शेष ८ सेर । घी--२ सेर।) इसे पेया या मण्डादिके साथ खिलानेसे (७७५६) षड्विन्दुघृतम् (२) दारुण त्रिदोषज अतिसार भी नष्ट हो जाता है। (यो. र. । पीनसा.) (७७५४) षडङ्गघृतम् (२) भृङ्ग लवङ्गं मधुकं च कुष्ठं ___ सनागरं गोघृतमिश्रितं च । (वृ, मा. । राजयक्ष्मा. ; व. से.) षबिन्दु नासास्थिगदं च पीनसं पिप्पलीपिप्पलीमूलचव्यचित्रकनागरैः। शिरोगतं रोगशतं च हन्ति ॥ सयावशूकैः सक्षीरैः स्रोतसां शोधनं घृतम् ।। । भंगरा, लौंग, मुलैठी, कूठ और सांठ; इनका पीपल, पीपलामूल, चव, चीता, सेांठ और महीन चूर्ण १-१ भाग ले कर सबको ४० भाग जवाखार ५-५ तोले ले कर कल्क बनावें। धीमें मिलावें । ३ सेर घीमें उपरोक्त कल्क और १२ सेर इसकी नस्य लेनेसे नासास्थिके रोग, पोनस दूध मिला कर पकावें । जब दूध जल जाय तो | और शिरके सैकड़ों रोग नष्ट हो जाते हैं। घीको छान लें। मात्रा-६ बूंद । इति षकारादिधृतपकरणम् For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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