SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५० भारत-भैषज्य रत्नाकरः [ शकारादि तथा दन्तीद्रवैवल्लं दद्यादाकवारिणा। निहन्ति परिणामोत्थमम्लपित्तं वमिं तथा । तेन कोष्ठे विशुद्ध तु दधिभक्तं तु भोजयेत् ॥ | अन्नद्रवभवं शूलं सनिपातसमुद्भवम् ॥ सर्वाणि शूलानि हरेद्रसः शूलान्तको मतः ॥ सर्वशूलानिहन्त्याशु शुष्कदावनलो यथा ॥ 'पारद भस्म और अभ्रक भस्म ५-५ तोले सेठ, मिर्च, पीपल, हर, बहेड़ा, आमला, ताम्र भस्म १० तोले, शुद्ध गंधक १५ तोले, हरि- नागरमोथा, निसोत और चीतामूल १-१ तोला, ताल भस्म ( या शुद्र हरताल ) १. तोला, रौप्य समान भाग पारद गंधककी कज्जली १ तोला तथा माक्षिक भस्म १। तोला, स्वर्ण माक्षिक भस्म श लोह भस्म, अभ्रक भस्म और बायबिडंग २-२ तोला, कलियारीकी जड़ २॥ तोले, सीसा भस्म तोले ले कर सबको एकत्र मिला कर त्रिफलाके २॥ तोले, वंगभस्म २॥ तोले और निसोतका काथमें खरल करें और (३-३ रत्तीकी) गोलियां चूर्ण २० तोले ले कर सबको एकत्र मिला कर बना लें । भुई आमलेके स्वरस और दन्तीमूलके काथकी इनमेंसे १-१ गोली प्रातःकाल कांजीके साथ सात सात भावना दे कर ३-३ रत्तीकी गोलियां सेवन करनेसे परिणाम शूल, अम्लपित्त, वमन, अन्न बना लें। द्रवशूल और सन्निपातज शूलादि समस्त प्रकारके इनमेंसे एक गोली अदरकके रसके साथ शूल नष्ट होते हैं। देनेसे विरेचन हो कर समस्त प्रकारके शूल नष्ट शूलारिरसः होते हैं। (र. का. धे, । शूला.) विरेचन होनेके पश्चात् दही भात खाना प्र. सं. ५५९२ महोदधिरसः (वृहत् ) चाहिये। (४) देखिये। (७६६६) शूलान्तको रसः (७६६७) शूलेभसिंहिनी गुटिका (भै. र. ; धन्व. । शृला. ; र. चि. म. । स्त. ११) (र. का. धे. । शूला.) त्र्यूषणत्रिफलामुस्तं त्रिवृता चित्रकं तथा । बलेः शुद्धस्य भागाध भागाध पारदस्य च । एकैकशः समो भागस्तदधै रसगन्धयोः ॥ विषस्य भागो विज्ञेयो मरिचस्य त्रयः स्मृताः ॥ लौहाभ्रकविडङ्गानां भागस्तु द्विगुणो भवेत् । भागेकं पिप्पलीशुण्ठयोः सर्वमेकत्र चूर्णयेत् । एतत्सर्वं समादाय चूर्णयित्वा विचक्षणः ॥ भावयेच्ङ्गवेरस्य रसेनैव त्रिवासरम् ॥ त्रिफलायाः कषायेण गुडिकाः कारयेद्भिषक् । रुघुपत्ररसेनैव भावनात्रितयं तथा । तदेका भक्षयेत्मातर्भक्तवारि पिवेदनु ॥ पश्चात्संशोध्य चणकमात्रा कार्या वटी बुधैः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy