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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४६ भारत-भैषज्य रत्नाकरः [शकारादि - - सोंठ समान भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी | करञ्जकी गिरी और जीरा ५-५ तोले ले कर कुजली बना और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका | सबको एकत्र खरल करें। चूर्ण मिला कर पानके रसमें घोटकर २-२ रत्तीकी मात्रा-११ तोला । गोलियां बना लें। .इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे समस्त ___ इनके सेवनसे शल नष्ट होता है। उपद्रो युक्त शूल नष्ट होता है । - (७६५६) शूलगजकेसरीरसः (३). ( व्यवहारिक मात्रा-२ माशे ।) (र. का. धे. । शूला.) | (७६५८) शूलगजकेसरीरसः (५) द्विक्षारं पश्चलवणं त्र्यूषणं रसगन्धको । ( र. र. स. । अ. १८) पृथक् समं सर्वतुल्यं दन्तीबोजानि पेषयेत् ॥ पलप्रमाणसूतेन बलिना द्विगुणेन च । बोजपूररसैः सप्तभावनान्ते रसो भवेत् । शुद्धत्रिपलतालेन कृत्वा कज्जलिकां व्यहम् ॥ पर्णपत्रोदकाभ्यां तु स्याच्छूलगजकेसरी ॥ | पलमानेन कर्तव्यं शुद्धताम्रस्य सम्पुटम् । ___ जवाखार, सज्जीखार, पांचो नमक, सोंठ, पिधानपात्रसंग्रस्ततलपात्रास्यवत्खलु ॥ काली मिर्च, पीपल, शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक | कजली सम्पुटस्यान्तनिदध्यात्तदनन्तरम् । १-१ भाग तथा शुद्ध जमालगोटा सबके बराबर अधस्तादुपरिष्टाच्च सम्पुटस्याऽऽक्षिपेत्खलु ॥ ले कर प्रथम पारे गंधकको कज्जली बनावें और आकण्ठं पटुचूर्णे तु निधाय च निरुध्य च । फिर उसमें अन्य ओषधियांका चूर्ण मिला कर विशोष्य गजसंज्ञेन पुटेन पुटयेत्ततः ॥ बिजोरेके रसको सात भावना दें और (१-१ | पटचर्ण विधायाथ सिन्धुमध्येविनिक्षिपेत् । रत्तीको ) गोलियां बना लें। पथ्याकरसोपेतो वल्लमानेन सेवितः ॥ इनमेंसे १ गोली पानके रसमें खानेसे शूल | रसो निःशेषशूलघ्नः स्थाच्छूलगजकेसरी॥ नष्ट होता है। ... ५ तोले शुद्ध पारद, १० तोले शुद्ध गंधक (७६५७) शूलगजकेसरीरसः (४) और १५ तोले शुद्ध हरतालको कज्जली बनावें और (र. चं.। शला.) उसे ५ तोले शुद्ध ताम्रकी डिबियामें बन्द कर दें। मृततानं पलैकं तु चिनासारं पलाष्टकम् । यह डिबिया ऐसी होनी चाहिये कि जिसका ऊपर हि हरीतकी व्योपं करअवीजजीरकम् ॥ वाला ढकना नीचेके भाग पर अन्छी तरह जम प्रत्येकं पलमात्र तु चूर्ण कोष्णोदके पिबेत् । | जाए । तदनन्तर उस पर ३-४ कपरौटी करके करेकं शूलशान्त्यर्थं सर्वोपद्रवसंयुतम् ॥ सुखा लें और फिर उसे एक हाण्डीमें सेंधा नमकके ताम्र भस्म ५ तोले, इमलीका क्षारे ४० | चूर्णके बीचमें रखकर हांडीका मुख शरावसे ढककर तोले; तथा भुनी हुई हींग, हर्र, सांठ, मिर्च, पीपल, । उस पर ३-४ कपड़मिट्टी कर दें। नमक हाण्डीमें For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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