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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४१ - - - - रसपकरणम् ] पञ्चमो भागः रसार्धभागं च विषं च दत्वा तद्वालुकापूर्णघटे विदध्याच्छनैः पचेद तावदुपविपाचयेदग्निजले क्षणं तत् । यमुप्य । शीतारिसमस्य रसायनस्य ब्रीहिर्विवर्णत्वमुपैति यावत्ततस्तु शीतं विदधीत् ॥ वल्लं च सार्ध मरिचाकेण ।। | सिद्धं तच्च समाददीत तुलसीतोयेन गुमोन्मितं । मरीचचूर्णेन घृतप्लुतेन पश्चात् क्षौद्रकणासिताज्यपयसा कृत्वानुपानं गदी सेवेत मासं च घृतं च पथ्यम् ॥ | भुनीताथ पयोऽन्नमुद्गसहितं साज्यश्च इन्यान्नृणां शुद्ध पारद १ भाग और शुद्ध गंधक २ भाग तापं कालरसेन सञ्चितमयं शीतारि नामा रसः॥ लेकर दोनोंकी कज्जली बनावें । तदनन्तर उसे पेठेके क्षारके पानी, चूनेके पानी और तिलपुनर्नवा (बिसखपरा) और चीतेके स्वरसकी १-१ क्षारके पानी में दोलायन्त्र विधिसे पृथक् पृथक् भावना दें और फिर उसमें २४ भाग आकके पके पकाई हुई हरताल १ भोग और शुद्ध पारद १ भाग हुवे पत्तोंका रस मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें। लेकर दोनोंको एकत्र खरेल करके ३ दिन करेलेके जब रस सूख जाय तो १२ भाग शुद्ध बछनाग रसमें घोटें । तदनन्तर उसे मजबूत शरावमें रखकर मिलाकर थोड़ासा चीतेका रस मिलाकर पुनः पकावें शुद्ध ताम्रकी कटोरी से ढकदें और सन्धिको चूना, और सूख जाने पर खरल करके रक्खें । हर्रका चूर्ण, गुड़, सेंधानमकका चूर्ण और खिड़िया मात्रा-२-३ रत्ती । मिट्टीके मिश्रणसे बन्द कर दें । तथा उसके ऊपर इसे काली मिचौंके चूर्ण और अदरकके रसके । कपडामा करके सुखा ल और उस बालकासाथ अथवा मिचोंके चूर्ण और घीके साथ सेवन यन्त्रमें रखकर पकावें । जब रेतके ऊपर डाले हुवे धान फूटने लगें तो अग्नि देनी बन्द कर दें और करनेसे वातव्याधि नष्ट होती है। फिर हारडीके स्वांगशीतल होने पर उसमेंसे (७६४३) शीतारिरसः (६) औषधको निकालकर पीस लें। ( भै. र. ; र. रा. सु. । ज्वरा.) मात्रा-१ रत्ती । कूष्माण्डक्षारचूर्णोदकतिलजे पृथक् पाचितं इसे तुलसीपत्रके रसके साथ खिलाने के | पश्चात् शहद, पोपलका चूर्ण, मिश्री, घी, और दूध तुल्यं सूतेन पिष्ट्वा त्रिदिवसमसकृत् कारवेल एकत्र मिलाकर पिलाना चाहिये। द्रवेण । क्षिप्त्वा तत्सर्परान्तर्दिनपतिपिहितं रन्ध्रमध्य पथ्य-दूध, भात, मूंगका यूष, घी । इसके सेवनसे पुराना ज्वर नष्ट होता है। नीरन्धं चूर्णपथ्यागुडलवणखटीमृद्भिरप्यन्त शीतारिरसः (७) रालम् ॥ शीतज्वरारिरसः (१) देखिये। शुद्धताल न्धयेत्तं For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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