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रसप्रकरणम् ]
पञ्चमो भागः
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इसके प्रयोगसे शत्रुवों द्वारा प्रयुक्त हुवे मन्त्र (७६२३) शीघ्रप्रभावरसः औषधादिके दुष्ट प्रभाव नष्ट होते हैं तथा पाप
(र. र. स. । उ. अ. १६) (गनोविकार) और अलक्ष्मी (प्रभाव शून्यता) का
पारदं गन्धकं व्योम तीक्ष्णं तालं मनःशिला । नाश होता है।
यह गुटिका बल और कामशक्ति वर्द्धक, सौवीरमअनं शुद्धं विमलं च समांशकम् ॥ प्रशंसनीय तथा कान्ति, यश, और सन्तानकी वृद्धि। एभिः कज्जलिकां कृत्वा स्वल्पतैलेन भर्जयेत । करने वाली है । इसे मुखमें धारण करनेसे विवाद में ग्रन्थिकं जीरकं चित्रं दीप्यकं मुस्तकं विषम् ॥ जय और राजसभामें आदर प्राप्त होता है। बालानं बालबिल्वं च मोचसारं समांशकम् ।
विचूर्ण्य पूर्ववत्कल्क तदर्धेन विनिक्षिपेत् ।। इसके सेवनसे शरीरकी कान्ति, मेधा, स्मृति,
पुनर्विमर्दयेद्यत्नादेकरूपं भवेद्यथा । बुद्धि और बल बढ़ता है; शरीर अनुपमेय हो जाता .
भावयेत्सप्तवाराणि पश्चकोलकषायतः ।। है; पुष्टि, और ओजकी वृद्धि होती है; इन्द्रियां
अरलुत्वग्रसेनापि दशवाराणि भावयेत् । निर्मल हो जाती हैं; तेज बढ़ता है।
प्रोक्तेन क्रमयोगेन रतो निष्पधते ह्ययम् ॥ इसे एक वर्ष तक सेवन करते रहनेसे दोसौ .
जग्धो विश्वधनाम्बुना स हि रसः शीघ्रमवर्षकी बलि पलिन और रोग रहित आयु प्राप्त
भावाभियो। होती है । दो वर्ष तक सेवन करनेसे ४ सौ वर्षकी
निष्कापमितो महाग्रहणिकारोगेऽतिसारामये।। आयु प्राप्त होती है यह मुनियोंके सेवन करने योग्य
आध्माने ग्रहणीभवे रुचिहते वाते च मन्दानले। रसायन है।
मुक्ते चापि मले पुनश्चलामलंशङ्कामु हिक्कासु च ।। (७६२२) शीघ्रज्वरारिरसः
(१) शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, अभ्रक भस्म, (र. सं. क. । उल्ला. ४)
तीक्ष्ण लोह भस्म, शुद्ध हरताल, शुद्ध मनसिल, रसहिङ्गालनेपाला वृद्ध या दन्त्यम्बुमदिताः। शुद्ध सौवीराजन, और विमल भस्म समान भाग द्वौ यामौ ज्वरनाशाय गुञ्जका सितया सह ॥ ले कर प्रथम पारे गन्धककी कजली बनावें और
रस सिन्दूर १ भाग, शुद्ध हिंगुल २ भाग फिर उसमें अन्य औषधे मिलाकर अच्छी तरह और शुद्ध जमालगोटा ३ भाग ले कर सबको २ खरल करें । तदनन्तर उसमें थोड़ासा तेल मिलापहर दन्तीमूलके काथमें घोट कर १-१ रत्तीकी कर मन्दाग्नि पर भूनें । गोलियां बना लें।
(२) पीपलामूल, जीरा, चीता, अजवायन, इनमेंसे १-१ गोली मिश्रीके साथ खिलानेसे
नागरमोथा, शुद्ध बछनाग, अमचूर, बेलगिरी और (विरचन हो कर ) वर नष्ट हो जाता है। मोचरस समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । इस
(यह वटी नवीन ज्वर में विशेष उपयोगी है।) चूर्णको भी उपरोक्त विधिसे तेलमें भून लें।
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