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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः - - इसके प्रयोगसे शत्रुवों द्वारा प्रयुक्त हुवे मन्त्र (७६२३) शीघ्रप्रभावरसः औषधादिके दुष्ट प्रभाव नष्ट होते हैं तथा पाप (र. र. स. । उ. अ. १६) (गनोविकार) और अलक्ष्मी (प्रभाव शून्यता) का पारदं गन्धकं व्योम तीक्ष्णं तालं मनःशिला । नाश होता है। यह गुटिका बल और कामशक्ति वर्द्धक, सौवीरमअनं शुद्धं विमलं च समांशकम् ॥ प्रशंसनीय तथा कान्ति, यश, और सन्तानकी वृद्धि। एभिः कज्जलिकां कृत्वा स्वल्पतैलेन भर्जयेत । करने वाली है । इसे मुखमें धारण करनेसे विवाद में ग्रन्थिकं जीरकं चित्रं दीप्यकं मुस्तकं विषम् ॥ जय और राजसभामें आदर प्राप्त होता है। बालानं बालबिल्वं च मोचसारं समांशकम् । विचूर्ण्य पूर्ववत्कल्क तदर्धेन विनिक्षिपेत् ।। इसके सेवनसे शरीरकी कान्ति, मेधा, स्मृति, पुनर्विमर्दयेद्यत्नादेकरूपं भवेद्यथा । बुद्धि और बल बढ़ता है; शरीर अनुपमेय हो जाता . भावयेत्सप्तवाराणि पश्चकोलकषायतः ।। है; पुष्टि, और ओजकी वृद्धि होती है; इन्द्रियां अरलुत्वग्रसेनापि दशवाराणि भावयेत् । निर्मल हो जाती हैं; तेज बढ़ता है। प्रोक्तेन क्रमयोगेन रतो निष्पधते ह्ययम् ॥ इसे एक वर्ष तक सेवन करते रहनेसे दोसौ . जग्धो विश्वधनाम्बुना स हि रसः शीघ्रमवर्षकी बलि पलिन और रोग रहित आयु प्राप्त भावाभियो। होती है । दो वर्ष तक सेवन करनेसे ४ सौ वर्षकी निष्कापमितो महाग्रहणिकारोगेऽतिसारामये।। आयु प्राप्त होती है यह मुनियोंके सेवन करने योग्य आध्माने ग्रहणीभवे रुचिहते वाते च मन्दानले। रसायन है। मुक्ते चापि मले पुनश्चलामलंशङ्कामु हिक्कासु च ।। (७६२२) शीघ्रज्वरारिरसः (१) शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, अभ्रक भस्म, (र. सं. क. । उल्ला. ४) तीक्ष्ण लोह भस्म, शुद्ध हरताल, शुद्ध मनसिल, रसहिङ्गालनेपाला वृद्ध या दन्त्यम्बुमदिताः। शुद्ध सौवीराजन, और विमल भस्म समान भाग द्वौ यामौ ज्वरनाशाय गुञ्जका सितया सह ॥ ले कर प्रथम पारे गन्धककी कजली बनावें और रस सिन्दूर १ भाग, शुद्ध हिंगुल २ भाग फिर उसमें अन्य औषधे मिलाकर अच्छी तरह और शुद्ध जमालगोटा ३ भाग ले कर सबको २ खरल करें । तदनन्तर उसमें थोड़ासा तेल मिलापहर दन्तीमूलके काथमें घोट कर १-१ रत्तीकी कर मन्दाग्नि पर भूनें । गोलियां बना लें। (२) पीपलामूल, जीरा, चीता, अजवायन, इनमेंसे १-१ गोली मिश्रीके साथ खिलानेसे नागरमोथा, शुद्ध बछनाग, अमचूर, बेलगिरी और (विरचन हो कर ) वर नष्ट हो जाता है। मोचरस समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । इस (यह वटी नवीन ज्वर में विशेष उपयोगी है।) चूर्णको भी उपरोक्त विधिसे तेलमें भून लें। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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