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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [शकारादि द्विजीर घनं लौहमभ्रं कर्षद्वयं पृथक् ।। पाठान्तरके अनुसारखादेदमियलापेक्षो भोजनादौ विचक्षणः ॥ विडङ्गके स्थान पर पोपल है। शूलं सर्वभवं हन्ति पित्तशूलं विशेषतः। घो ८ पल (८० तोले) है। इच्छूले पार्षशूलश्च कुक्षिवस्तिगुदे रुजम् ।। लोह तथा अभ्रकका अभाव है । कासं वासं तया शोथं ग्रहणीदोषमेव च । __ (७५७८)शर्करालौहम् (२) यकृत्प्लीहोदरानाहराजयक्ष्मविनाशनम् ॥ (रसे. सा. सं. । शूला. ; रसे. चि. म. । अ. विष्टम्भमाम दौर्बल्यमग्निमान्यश्च यद्भवेत् । ९; र. र. ; धन्च. ; र. रा. सु.) एतान् रोगानिहन्त्याशु भास्करस्तिमिर यथा ॥ त्रिफलायास्तथा धायाश्चर्ण वा काललोडजम' . शतावरका रस २ सेर, गोमूत्र २ सेर, बकरी- शर्कराचूर्णसंयुक्तं सर्वशूलेषु योजयेत् ।। का दूध २ सेर और आमले का रस २ सेर तथा त्रिफलोका चूर्ण १ भाग, आमलेका चूर्ण १ मण्डूर भस्म ४० तोले और खांड ८० तोले एवं भाग, लोहभस्म २ भाग और खांड ४ भाग ले घी ४० तोले ले कर सबको एकत्र मिला कर कर सबको एकत्र खरल कर लें। मन्दाग्नि परे पकावें और पाक तैयार हो जाने पर ___ यह चूर्ण समस्त प्रकारके शूलोंको नष्ट उसे ठण्डा करके उसमें बायबिडंग, हर्र, बहेड़ा, आमला, सेांठ, मिर्च, पीपल, अजवायन, गजपीपल, काला जोरा, सफेद जीरा, नागरमोथा, लोह भस्म . (मात्रा-४ से ८ रत्ती तक ।) और अभ्रक भस्म, २॥-२॥ तोले मिला कर . (७५७९)शर्कराघलोहम् सुरक्षित रक्खें । . ( रसे. सा. सं. । रक्तपित्ता. ; रसे. चि. म. । __इसके सेवनसे साधारणतः समस्त शूल और अ. ९; र. का. धे. ; धन्व.; र. रा. सु.। विशेषतः पित्तशल, हृच्छूल, पार्श्वशूल, कुक्षिशूल, रक्तपित्ता.) बस्तिशूल, गुदपीड़ा, एवं खांसी, श्वास, शोथ, शर्करातिलसंयुक्तं त्रिकाययुतन्त्वयः । ग्रहणी विकार, यकृत् , प्लीहा, उदर रोग, आनाह, रक्तपिसं निहन्त्याशु चाम्लपित्तहरं परम् ।। राजयक्ष्मा, कब्ज, आम, निर्बलता और अग्निमांधका - त्रिकुटा (सांठ, मिर्च, पीपल), त्रिफला (हरं, इस प्रकार नाश हो जाता है जिस प्रकार सूर्योदयसे बहेड़ा, आमला), त्रिमद ( नागरमोथा, चीता, अन्धकार । बायबिडंग ), तिल और खांड १-१ भाग तथा इसे भोजनके आरम्भमें खाना चाहिये ।। लोह भस्म सबके बराबर ले कर सबको एकत्र ( मात्रा-६ माशे ।) खरल करें। करता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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